अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 67/ मन्त्र 8
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - सूर्यः
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - दीर्घायु सूक्त
भूय॑सीः श॒रदः॑ श॒तात् ॥
स्वर सहित पद पाठभूय॑सीः। श॒रदः॑। श॒तात् ॥६७.८॥
स्वर रहित मन्त्र
भूयसीः शरदः शतात् ॥
स्वर रहित पद पाठभूयसीः। शरदः। शतात् ॥६७.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 67; मन्त्र » 8
विषय - दीर्घ व प्रशस्त जीवन
पदार्थ -
१. शतवर्षपर्यन्त हमारी देखने की शक्ति ठीक बनी रहे।
२. शतवर्षपर्यन्त हमारी जीवनशक्ति ठीक बनी रहे।
३. शतवर्षपर्यन्त हमारी बोधशक्ति ठीक [mentally alert] बनी रहे।
४. हम शतवर्षपर्यन्त उत्तरोत्तर प्ररूढ़-प्रबुद्ध होते चलें।
५. हम शतवर्षपर्यन्त उत्तरोत्तर पोषण को प्राप्त करें।
६. हम शतवर्षपर्यन्त बने रहें। हमारी सत्ता विनष्ट न हो जाए। फूलें-फलें [to be prosper ous]
७. हम शतवर्षपर्यन्त शुद्ध जीवनवाले हों [to be purified]|
८. सौ वर्ष से अधिक काल तक भी इसीप्रकार हमारी शक्तियों स्थिर रहें।
भावार्थ - प्रभु-कृपा से हम शतवर्षपर्यन्त व सौ से अधिक वर्षों तक शक्तियों को स्थिर रखते हुए समृद्ध व पवित्र जीवनवाले हों।
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