अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 9/ मन्त्र 10
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - शान्तिः, मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शान्ति सूक्त
शं नो॒ ग्रहा॑श्चान्द्रम॒साः शमा॑दि॒त्यश्च॑ राहु॒णा। शं नो॑ मृ॒त्युर्धू॒मके॑तुः॒ शं रु॒द्रास्ति॒ग्मते॑जसः ॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। ग्रहाः॑। चा॒न्द्र॒म॒साः। शम्। आ॒दि॒त्यः। च॒। रा॒हु॒णा। शम्। नः॒। मृ॒त्युः। धू॒मऽके॑तुः। शम्। रु॒द्राः। ति॒ग्मऽते॑जसः ॥९.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो ग्रहाश्चान्द्रमसाः शमादित्यश्च राहुणा। शं नो मृत्युर्धूमकेतुः शं रुद्रास्तिग्मतेजसः ॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। ग्रहाः। चान्द्रमसाः। शम्। आदित्यः। च। राहुणा। शम्। नः। मृत्युः। धूमऽकेतुः। शम्। रुद्राः। तिग्मऽतेजसः ॥९.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 9; मन्त्र » 10
विषय - चान्द्रमस ग्रह शान्तिकर हों
पदार्थ -
१. (चान्द्रमसा:) = चन्द्रमा से सम्बद्ध (ग्रहा:) = सब ग्रह (नः शम्) = हमारे लिए शान्त हो (च) = और (राहुणा) = प्रकाश को आवृत करनेवाले [विच्छिन्न करनेवाले] 'राहु' के साथ (आदित्य:) = सूर्य (शम्) = हमारे लिए शान्तिकर हो। २. (मृत्यु:) = लोगों की मृत्यु का कारण बननेवाला (धूमकेतु:) = धूमकेतु ग्रह (नः शम्) = हमारे लिए शान्तिकर हो तथा (तिग्मतेजसः) = तीन तेज-[ताप व प्रकाश]-वाले (रुद्रा:) = 'मृग-व्याध' आदि नक्षत्र (शम्) = हमारे लिए शान्तिकर हों।
भावार्थ - सब चान्द्रमस ग्रहों की, राहु के साथ सूर्य की, धूमकेतु तथा मृग-व्याध आदि नक्षत्रों की हमारे लिए अनुकूलता हो। [मृगव्याधश्च सर्पश्च निर्गतिश्च महायशाः । अजैकपादहिर्बुध्न: पिनाकी च परन्तप । दहनोऽथेश्वरश्चैव कपली च महाद्युतिः । स्थणुर्भगश्च भगवान् रुद्रा एकादश स्मृताः]॥
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