अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 36/ मन्त्र 7
सूक्त - पतिवेदनः
देवता - हिरण्यम्, भगः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पतिवेदन सूक्त
इ॒दं हिर॑ण्यं॒ गुल्गु॑ल्व॒यमौ॒क्षो अ॑थो॒ भगः॑। ए॒ते पति॑भ्य॒स्त्वाम॑दुः प्रतिका॒माय॒ वेत्त॑वे ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । हिर॑ण्यम् । गुल्गु॑लु । अ॒यम् । औ॒क्ष: । अथो॒ इति॑ । भग॑: । ए॒ते । पति॑भ्य: । त्वाम् । अ॒दु॒: । प्र॒ति॒ऽका॒माय॑ । वेत्त॑वे ॥३६.७॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं हिरण्यं गुल्गुल्वयमौक्षो अथो भगः। एते पतिभ्यस्त्वामदुः प्रतिकामाय वेत्तवे ॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । हिरण्यम् । गुल्गुलु । अयम् । औक्ष: । अथो इति । भग: । एते । पतिभ्य: । त्वाम् । अदु: । प्रतिऽकामाय । वेत्तवे ॥३६.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 36; मन्त्र » 7
विषय - दहेज
पदार्थ -
१. (इदम्) = यह (हिरण्यम्) = स्वर्ण है-स्वर्ण के कुछ आभूषण आदि हैं। (गुल्गुलु) = गुड़ में पकाये गये कुछ भोज्य द्रव्य हैं। विवाह के बाद लौटने पर मार्ग के लिए ये भोज्य द्रव्य उपयुक्त होंगे। (अयम् औक्ष:) = यह बैल या गाय के निमित्त धन है, अथ (उ) = और यह निश्चय से (भग:) = कन्या के निमित्त रक्खा हुआ कुछ धन है। २. इन वस्तुओं को (एते) = ये कन्या पक्षवाले लोग (पतिभ्यः) = पति के पक्षवालों के लिए (अदुः) = देते हैं। इसलिए देते हैं कि वे (त्वाम्) = तुझे (प्रतिकामाय) = प्रत्येक दृष्टिकोण से चाहने योग्य पति को (वेत्तवे) = [विद् लाभे] प्राप्त करा सके।
भावार्थ -
वरपक्षवालों को सत्कार के लिए कुछ भेंट देनी आवश्यक ही है। यह सत्कार कन्या को उनके लिए प्रिय बनाता है।
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