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अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
उदु॒ त्ये मधु॑मत्तमा॒ गिर॒ स्तोमा॑स ईरते। स॑त्रा॒जितो॑ धन॒सा अक्षि॑तोतयो वाज॒यन्तो॒ रथा॑ इव ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । ऊं॒ इति॑ । त्ये । मधु॑मत्ऽतमा: । गिर॑: । स्तोमा॑स: । ई॒र॒ते॒ ॥ स॒त्रा॒जित॑: । ध॒न॒ऽसा: । अक्षि॑तऽऊतय: । वा॒ज॒ऽयन्त॑: । रथा॑:ऽइव ॥१०.१॥
स्वर रहित मन्त्र
उदु त्ये मधुमत्तमा गिर स्तोमास ईरते। सत्राजितो धनसा अक्षितोतयो वाजयन्तो रथा इव ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । ऊं इति । त्ये । मधुमत्ऽतमा: । गिर: । स्तोमास: । ईरते ॥ सत्राजित: । धनऽसा: । अक्षितऽऊतय: । वाजऽयन्त: । रथा:ऽइव ॥१०.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
विषय - स्तवन+ज्ञान
पदार्थ -
१. (उ) = निश्चय से (त्ये) = वे (मधुमत्तमाः) = जीवन को अतिशयेन मधुर बनानेवाली (स्तोमास:) = स्तुति-समूह (उदीरते) = उद्गत होते हैं। इसी प्रकार (गिर:) = ज्ञान की वाणियों उच्चरित होती हैं। ये स्तुति-वाणियों व ज्ञान की वाणियाँ हमारे जीवनों को अतिशयेन मधुर बनाती हैं। २. ये स्तोम (सत्राजित:) = [सह एब] एक साथ ही शत्रुओं को जीतनेवाले हैं। (धनसा:) = धनों को प्रदान करनेवाले हैं। (अक्षित ऊतयः) = अक्षीण रक्षणोंवाले हैं। (वाजयन्त:) = ये हमें शक्तिशाली बनानेवाले हैं और (रथाः इव) = ये स्तोम जीवन-यात्रा की पूर्ति के लिए रथ के समान हैं।
भावार्थ - हम प्रभु-स्तवन व ज्ञान के द्वारा जीवन को मधुर, विजयी, ऐश्वर्यसम्पन्न, सुरक्षित व शकिशाली बनाएँ। ये स्तवन व ज्ञान की वाणियाँ हमारे जीवन में रथ का काम देंगी- हमें लक्ष्य स्थान पर पहुँचाएंगी।
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