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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 113

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 113/ मन्त्र 2
    सूक्त - भर्गः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-११३

    तं हि स्व॒राजं॑ वृष॒भं तमोज॑से धि॒षणे॑ निष्टत॒क्षतुः॑। उ॒तोप॒मानां॑ प्रथ॒मो नि षी॑दसि॒ सोम॑कामं॒ हि ते॒ मनः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । हि । स्व॒ऽराज॑म् । वृ॒ष॒भम् । तम् । ओज॑से । धि॒षणे॒ । इति॑ । नि॒:ऽत॒त॒क्षतु॑: ॥ उ॒त । उ॒प॒ऽमाना॑म् । प्र॒थ॒म: । नि । सी॒द॒स‍ि॒ । सोम॑ऽकामम् । हि । ते॒ । मन॑: ॥११३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं हि स्वराजं वृषभं तमोजसे धिषणे निष्टतक्षतुः। उतोपमानां प्रथमो नि षीदसि सोमकामं हि ते मनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । हि । स्वऽराजम् । वृषभम् । तम् । ओजसे । धिषणे । इति । नि:ऽततक्षतु: ॥ उत । उपऽमानाम् । प्रथम: । नि । सीदस‍ि । सोमऽकामम् । हि । ते । मन: ॥११३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 113; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    १. (तम्) = उस (स्वराजम्) = स्वयं देदीप्यमान (वृषभम्) = शक्तिशाली प्रभु को (हि) = निश्चय से (धिषणे) = द्यावापृथिवी (निष्टतक्षत:) = [संस्कर्तुः] संस्कृत करते हैं। द्युलोक प्रभु की दीप्ति का आभास देता है तो पृथिवीलोक प्रभु की शक्ति व दृढ़ता का 'येन द्यौरुना पृथिवी च दृढा । प्रभु ने ही वस्तुत: युलोक को तेजस्वी व पृथिवीलोक को दृढ़ बनाया है। (तम्) = उस प्रभ को ही हम (ओजसे) = बल की प्राप्ति के लिए अपने अन्दर देखने का प्रयत्न करें। २. (उत) = और हे प्रभो। आप (उपमानाम्) -=उपमानभूत देवों में प्रथमः मुख्य होते हुए (निषीदसि) = हमारे हृदयों में निषण्ण होते हैं। हमने अपने पिता प्रभु-जैसा ज्ञानी व शक्तिशाली बनने का प्रयत्न करना है। हमारे लिए यह कहा जाए कि यह प्रभु के समान ज्ञानी व शक्तिशाली है। वस्तुत: ऐसे ही व्यक्ति जनता को प्रभु के अवतार प्रतीत होने लगते हैं। (ते मन:) = आपके प्रति प्रवण मन (हि) = निश्चय से (सोमकामम्) = सोम की कामनावाला होता है। प्रभु-प्रवण मन विलास में नहीं जाता और इसप्रकार सोम का रक्षण हो पाता है।

    भावार्थ - धुलोक में स्वराट् प्रभु का प्रकाश है तो पृथिवी में शक्तिशाली प्रभु की दृढ़ता। इस प्रभु का स्मरण करते हुए हम भी प्रकाश व शक्ति का सम्पादन करें। प्रभु-प्रवण मन सदा सोम का रक्षक होता है। अपने अन्दर प्रकाश व शक्ति का सम्पादन करनेवाला यह 'सौभरि' बनता है-अपना सम्यक् भरण करनेवाला। यही अगले सूक्त का ऋषि है -

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