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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 97

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 97/ मन्त्र 1
    सूक्त - कलिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-९७

    व॒यमे॑नमि॒दा ह्योऽपी॑पेमे॒ह व॒ज्रिण॑म्। तस्मा॑ उ अ॒द्य स॑म॒ना सु॒तं भ॒रा नू॒नं भू॑षत श्रु॒ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒यम् । ए॒न॒म् । इ॒दा । ह्य: । अपी॑पेम । इ॒ह । व॒ज्रिण॑म् ॥ तस्मै॑ । ऊं॒ इति॑ । अ॒द्य । स॒म॒ना । सु॒तम् । भ॒र॒ । आ । नू॒नम् । भू॒ष॒त॒ । श्रु॒ते ॥९७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वयमेनमिदा ह्योऽपीपेमेह वज्रिणम्। तस्मा उ अद्य समना सुतं भरा नूनं भूषत श्रुते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वयम् । एनम् । इदा । ह्य: । अपीपेम । इह । वज्रिणम् ॥ तस्मै । ऊं इति । अद्य । समना । सुतम् । भर । आ । नूनम् । भूषत । श्रुते ॥९७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 97; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    १. (वयम्) = हम (एनम्) = इस (वज्रिणम्) = वज्रहस्त प्रभु को (इह) = इस जीवन में (इदा) = अब और (ह्यः) = भूतकाल में भी [गत दिवस में भी] (अपीपेम) = अप्यायित करते हैं। स्तोत्रों के द्वारा हम प्रभु की भावना को अपने अन्दर बढ़ाते हैं। २. (तस्मा उ) = उस प्रभु-प्राप्ति के लिए (अद्य) = आज (समना) = संग्राम के द्वारा-वासनाओं को संग्राम में पराजित करने के द्वारा (सुतं भरा) = सोम का सम्भरण करते हैं। वे प्रभु (नूनम्) = निश्चय से (श्रुते) = शास्त्र श्रवण होने पर (भूषत) = प्राप्त होते हैं [आभवतु -आगच्छतु]।

    भावार्थ - हम सदा प्रभु का स्तवन करें। स्तुति द्वारा वासनाओं को पराजित करके सोम का रक्षण करें। सोम-रक्षण द्वारा तीव्र बुद्धि होकर प्रभु-दर्शन करनेवाले बनें।

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