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अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 97/ मन्त्र 2
वृक॑श्चिदस्य वार॒ण उ॑रा॒मथि॒रा व॒युने॑षु भूषति। सेमं नः॒ स्तोमं॑ जुजुषा॒ण आ ग॒हीन्द्र॒ प्र चि॒त्रया॑ धि॒या ॥
स्वर सहित पद पाठवृक॑: । चि॒त् । अ॒स्य॒ । वा॒र॒ण: । उ॒रा॒ऽमथि॑: । आ । व॒युने॑षु । भू॒ष॒ति॒ ॥ स: । इ॒मम् । न॒: । स्तोम॑म् । जु॒जु॒षा॒ण: । आ । ग॒हि॒ । इन्द्र॑ । प्र । चि॒त्रया॑ । धि॒या ॥९७.२॥
स्वर रहित मन्त्र
वृकश्चिदस्य वारण उरामथिरा वयुनेषु भूषति। सेमं नः स्तोमं जुजुषाण आ गहीन्द्र प्र चित्रया धिया ॥
स्वर रहित पद पाठवृक: । चित् । अस्य । वारण: । उराऽमथि: । आ । वयुनेषु । भूषति ॥ स: । इमम् । न: । स्तोमम् । जुजुषाण: । आ । गहि । इन्द्र । प्र । चित्रया । धिया ॥९७.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 97; मन्त्र » 2
विषय - 'वृक व उरामथि' के जीवन में परिवर्तन
पदार्थ -
१. (वारण:) = सबके मार्गों को रोकनेवाला (वृकःचित्) = स्तेन [चोर] भी तथा (उरामथि:) = [उर togo] मार्ग में जानेवालों का हिंसक [Highway robber] डाकू भी (अस्य वयुनेषु) = इस प्रभु का प्रज्ञान होने पर, कहीं अकस्मात् सत्संग में प्रभु का उपदेश सुनने पर (आभूषति) = अनुकूल को प्राप्त करता है, अर्थात् प्रतिकूल कर्मों से निवृत्त हो जाता है। २. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (स:) = वे आप (इमं नः) = इस हमारे (स्तोमम्) = स्तवन को (जुजुषाण:) = प्रीतिपूर्वक ग्रहण करते हुए (चित्रया धिया) = चेतना देनेवाली बुद्धि के साथ (प्र आगहि) = प्रकर्षेण प्राप्त होइए।
भावार्थ - प्रभु-विषयक उपदेश चोरों व डाकुओं के जीवन में भी परिवर्तन लानेवाला होता है। प्रभु हमारे स्तोम से प्रसन्न हों और हमारे लिए चेतनादायिनी बुद्धि दें।
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