अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 4/ मन्त्र 1
य त्वा॑ गन्ध॒र्वो अख॑न॒द्वरु॑णाय मृ॒तभ्र॑जे। तां त्वा॑ व॒यं ख॑नाम॒स्योष॑धिं शेप॒हर्ष॑णीम् ॥
स्वर सहित पद पाठयाम् । त्वा॒ । ग॒न्ध॒र्व: । अख॑नत् । वरु॑णाय । मृ॒तऽभ्र॑जे । ताम् । त्वा॒ । व॒यम् । ख॒ना॒म॒सि॒ । ओष॑धिम् । शे॒प॒:ऽहर्ष॑णीम् ॥४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
य त्वा गन्धर्वो अखनद्वरुणाय मृतभ्रजे। तां त्वा वयं खनामस्योषधिं शेपहर्षणीम् ॥
स्वर रहित पद पाठयाम् । त्वा । गन्धर्व: । अखनत् । वरुणाय । मृतऽभ्रजे । ताम् । त्वा । वयम् । खनामसि । ओषधिम् । शेप:ऽहर्षणीम् ॥४.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
विषय - गन्धर्व द्वारा ओषधि खनन
पदार्थ -
१. (यां त्वा) = जिस तुझ ओषधि को (गन्धर्वः) = ज्ञान की वाणियों को धारण करनेवाले ज्ञानी पुरुष ने (वरुणाय) = पाप का निवारण करनेवाले उत्तम पुरुष के लिए (अखनत्) = खोदा है, जो किन्हीं अज्ञात कारणों से (मृत-भ्रजे) = [भ्राज़ दीसौं] नष्ट दीप्तिवाला हो गया है, रोगवश उसकी शक्ति में कमी आ गई है। सामान्यत: उसकी वृत्ति अच्छी है। इसके स्वास्थ्य व शक्तिवर्धन के लिए गन्धर्व एक ओषधि खोदकर लाता है। २. (ताम्) = उस (त्वा ओषधिम्) = तुझ ओषधि को (वयम्) = हम (खनामसि) = खोदते हैं, जो तु (शेपहर्षिणीम्) = [शेप-पेशस्] रूप को-आकृति को हर्षित करनेवाली है। यह ओषधि शक्ति-सम्पन्न बनाकर मृत-दीप्तिवाले चेहरे को फिर से दीप्त-सा कर देती है। इस ओषधि का सेवन करके यह वरुण फिर चमक उठता है।
भावार्थ -
उत्तम वृत्तिवाले, परन्तु किसी रोगवश नष्ट दीसिवाले पुरुष के लिए ज्ञानी वैद्य 'ऋषभक' आदि ओषधियों को खोदकर लाता है। इस ओषधि के सेवन से फिर सबल होकर यह वरुण चमक उठता है। ओषधि का प्रयोग ज्ञानी पुरुष को ही करना है।
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