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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 3

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 3/ मन्त्र 7
    सूक्त - अथर्वा देवता - रुद्रः, व्याघ्रः छन्दः - ककुम्मतीगर्भोपरिष्टाद्बृहती सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    यत्सं॒यमो॒ न वि य॑मो॒ वि य॑मो॒ यन्न सं॒यमः॑। इ॑न्द्र॒जाः सो॑म॒जा आ॑थर्व॒णम॑सि व्याघ्र॒जम्भ॑नम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । स॒म्ऽयम॑: । न । वि । य॒म॒: । वि । य॒म॒: । यत् । न । स॒म्ऽयम॑: । इ॒न्द्र॒ऽजा: । सो॒म॒ऽजा: । आ॒थ॒र्व॒णम् । अ॒सि॒ । व्या॒घ्र॒ऽजम्भ॑नम् ॥३.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्संयमो न वि यमो वि यमो यन्न संयमः। इन्द्रजाः सोमजा आथर्वणमसि व्याघ्रजम्भनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । सम्ऽयम: । न । वि । यम: । वि । यम: । यत् । न । सम्ऽयम: । इन्द्रऽजा: । सोमऽजा: । आथर्वणम् । असि । व्याघ्रऽजम्भनम् ॥३.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 7

    पदार्थ -

    १. (यत्) = चूँकि (संयमः) = जो संयम है-आत्मशासन है वह (वियमः न) = उच्छंखलता नहीं और (यत्) = क्योंकि (वियम:) = उच्छखलता-नियमविरुद्ध गति (संयमः न) = संयम नहीं है। इन संयम और वियम में आकाश-पाताल का अन्तर है। २. जो संयम है, वह (इन्द्रजा:) = [इन्द्रस्य जनयिता] इन्द्र को जन्म देनेवाला है। यह संयम मनुष्य को इन्द्र, अर्थात् देवराट् बनाता है-सब दिव्य गुणों से सम्पन्न करता है। यह संयम (सोमजा:) = [सोमस्य जनयिता] शरीर में सोमशक्ति को उत्पन्न करनेवाला है-सोम [Semen] की स्थिरता का कारण बनता है। हे संयम! तू (व्याघ्रजम्भनम्) = व्याघ्र आदि हिंस्र पशुओं के समान हिंसक वृत्तियों को समाप्त करनेवाला है। संयम मनुष्य को पाशविक वृत्तियों से ऊपर उठाकर दिव्य वृत्तियोंवाला बनाता है। वियम मनुष्य में पाशववृत्तियों को प्रबल करता है।

    भावार्थ -

    संयम हमें इन्द्र-देवराट् बनाता है। यह व्यानतुल्य हिंस्रवृत्तियों का विनाश करता है। यह हममें सोम का रक्षण करता है। इसके विपरीत वियम हमें पशु ही बना डालता है।

     

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