Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 3

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 3/ मन्त्र 6
    सूक्त - अथर्वा देवता - रुद्रः, व्याघ्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    मू॒र्णा मृ॒गस्य॒ दन्ता॒ अपि॑शीर्णा उ पृ॒ष्टयः॑। नि॒म्रुक्ते॑ गो॒धा भ॑वतु नी॒चाय॑च्छश॒युर्मृ॒गः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मू॒र्णा: । मृ॒गस्य॑ । दन्ता॑: । अपि॑ऽशीर्णा: । ऊं॒ इति॑ । पृ॒ष्टय॑: । नि॒ऽम्रुक् । ते॒ । गो॒धा । भ॒व॒तु॒ । नी॒चा । अ॒य॒त् । श॒श॒यु: । मृ॒ग: ॥३.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मूर्णा मृगस्य दन्ता अपिशीर्णा उ पृष्टयः। निम्रुक्ते गोधा भवतु नीचायच्छशयुर्मृगः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मूर्णा: । मृगस्य । दन्ता: । अपिऽशीर्णा: । ऊं इति । पृष्टय: । निऽम्रुक् । ते । गोधा । भवतु । नीचा । अयत् । शशयु: । मृग: ॥३.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 6

    पदार्थ -

    १. (मृगस्य) = हिंस्र पशु के (दन्ताः) = दाँत (मूर्णा:) = मूढ-खादन में असमर्थ हो जाएँ (उ) = और (पृष्टयः अपि) = इसकी पसलियाँ भी (शीर्णा:) = विनष्ट हो जाएँ, यह किसी के भी हिंसन में समर्थ न रहे। २. हे पान्थ । (गोधा) = गोह आदि प्राणी (ते) = तेरी (निम्रुक्) = दृष्टि का अविषय (भवतु) = हो। रास्ते में तुझे गोह आदि विघ्नकारक न मिलें। यह (शशयुः) = झाड़ियों में छिपकर सोनेवाला (मृगः) = हिंस पशु (नीचा अयत्) = निचले मार्ग से ही चला जाए-यह मार्ग में रुकावट का कारण न बने।

    भावार्थ -

    हिंस्र पशुओं के दाँत व पसलियों शीर्ण कर दी जाएँ। मार्ग में गोह व हिंस्र पशुओं

    का भय न बना रहे।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top