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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अथर्वा देवता - रुद्रः, व्याघ्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    54

    मू॒र्णा मृ॒गस्य॒ दन्ता॒ अपि॑शीर्णा उ पृ॒ष्टयः॑। नि॒म्रुक्ते॑ गो॒धा भ॑वतु नी॒चाय॑च्छश॒युर्मृ॒गः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मू॒र्णा: । मृ॒गस्य॑ । दन्ता॑: । अपि॑ऽशीर्णा: । ऊं॒ इति॑ । पृ॒ष्टय॑: । नि॒ऽम्रुक् । ते॒ । गो॒धा । भ॒व॒तु॒ । नी॒चा । अ॒य॒त् । श॒श॒यु: । मृ॒ग: ॥३.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मूर्णा मृगस्य दन्ता अपिशीर्णा उ पृष्टयः। निम्रुक्ते गोधा भवतु नीचायच्छशयुर्मृगः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मूर्णा: । मृगस्य । दन्ता: । अपिऽशीर्णा: । ऊं इति । पृष्टय: । निऽम्रुक् । ते । गोधा । भवतु । नीचा । अयत् । शशयु: । मृग: ॥३.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वैरी के नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे चोर !] (मृगस्य) पशु [अर्थात् तेरी गाह] के (दन्तः) दान्त (मूर्णा) बन्द वा मोंथरे (उ) और (पृष्टयः) पसलियाँ (अपि शीर्णाः) चूर-चूर [हो जावें], (ते) तेरी (गोधा) गोह (निम्रुक्) नीचे (भवतु) हो जावे, और (मृगः) वह पशु (शशयुः) सोता हुआ [निरुद्यमी होकर] (नीचा) नीचे (अयात्) आ जावे ॥६॥

    भावार्थ

    (गोधा) गोह वा गोसाँप एक छपकली जाति का जन्तु होता है, चोर उसको पूँछ में डोरी बाँधकर ऊँचे घरोंपर फेंक देते, और उसे पकड़ कर ऊपर चढ़ जाते हैं। मनुष्य घर ऐसे चिकने और दृढ़ बनावें और सावधानी रक्खें कि चोर, डाकुओं की गोह आदि फंदे घरों पर न चिपट सकें किन्तु निकम्मे होकर नीचे फिसल पड़ें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(मूर्णाः) मुर्व बन्धने-राल्लोपः। पा० ६।४।२१। इति वकारलोपः। रदाभ्यां निष्ठातो नः पूर्वस्य च दः। पा० ८।२।४२। इति तस्य नः। बद्धाः। कुण्ठिताः (मृगस्य) अ० २।३६।४। अन्वेषणशीलस्य। पशोः। गोधायाः (दन्ताः) हसिमृग्रिण्वामिदमि०। उ० ३।८६। इति दमु उपशमे-तन्। रदनाः। दशनाः (अपि-शीर्णाः) शॄ हिंसने-क्त। हिंसिताः। विदीर्णाः। त्रोटिताः (उ) अपि (पृष्टयः) पृषु सेके-क्तिच्। पर्शवः। पार्श्वास्थीनि (निम्रुक्) नि+म्रुचु गतौ-क्विप्। नीचगतिः (ते) तव। चोरस्य (गोधा) हलश्च। पा० ३।३।१२१। इति गुध परिवेष्टने-घञ्। टाप्। धनुर्गुणाघातवारणाय प्रकोष्ठबद्धा चर्मपट्टिका। जन्तुविशेषः (भवतु) (नीचा) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति नीचैः डा। नीचैः (अयत्) अय गतौ लेट्। अडागमः। अयताम् गच्छतु (शशयुः) भृमृशीङ्तॄ० उ० १।७। इति शीङ् स्वप्ने-उ। बाहुलकाद् द्विर्वचनम्। शयुः शयानः। निरुद्यमः (मृगः) पशुः ॥

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    विषय

    हिंस्त्र पशुओं के भय से रहित मार्ग

    पदार्थ

    १. (मृगस्य) = हिंस्र पशु के (दन्ताः) = दाँत (मूर्णा:) = मूढ-खादन में असमर्थ हो जाएँ (उ) = और (पृष्टयः अपि) = इसकी पसलियाँ भी (शीर्णा:) = विनष्ट हो जाएँ, यह किसी के भी हिंसन में समर्थ न रहे। २. हे पान्थ । (गोधा) = गोह आदि प्राणी (ते) = तेरी (निम्रुक्) = दृष्टि का अविषय (भवतु) = हो। रास्ते में तुझे गोह आदि विघ्नकारक न मिलें। यह (शशयुः) = झाड़ियों में छिपकर सोनेवाला (मृगः) = हिंस पशु (नीचा अयत्) = निचले मार्ग से ही चला जाए-यह मार्ग में रुकावट का कारण न बने।

    भावार्थ

    हिंस्र पशुओं के दाँत व पसलियों शीर्ण कर दी जाएँ। मार्ग में गोह व हिंस्र पशुओं

    का भय न बना रहे।

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    भाषार्थ

    (मृगस्य) शिकार का अन्वेषण करनेवाले जङ्गली-पशु के (दन्ताः) दाँत, (शीर्ष्णा: अपि) सिर के अवयव भी (पृष्टय: उ) और पसलिया (मूर्णाः) तोड़ दी जाएँ। [हे पान्थ, पथिक !] (गोधा) गोह (ते) तेरे लिए (निम्रुक भवतु) नितरां अपगत हो जाय, तेरे लिए दृष्टिगोचर न हो, (शशयु:) सोया हुआ (मृग:) शिकारी जङ्गली-पशु (नीचा) हमारे नीचे अर्थात् अधीनता में (अयत्) आ जाए।

    टिप्पणी

    [मृग:= मृग अन्वेषणे (चुरादिः)। निम्रुक् = नि + म्रुक् गतौ (भ्वादिः) नितरां अपगत हुआ (भबतु) हो जाए। अयत्=अय्+अट् लेट् लकार।]

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    भावार्थ

    (मृगस्य) हिंसक जीव के (दन्ताः) दांत (मूर्णाः भवन्तु) तोड़ डाले जायं, और (पृष्टयः) पसलियां भी (अपि शीर्णाः) खूब कच्ची कर डालनी चाहिये हे पुरुष तेरे आगे (गोधा) गोह भी (निम्रुक्) नीचे ही नीचे (भवतु) सरके और (शशयुः) सोया हुआ (मृगः) मृग, सिंह, भी (नीचा अयत्) हमारे नीचे अर्थात् अधीन आ जाय।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। रुद्र उत व्याघ्नो देवता। १ पथ्यापंक्ति, २, ४-६ अनुष्टुभः, ३ गायत्री, ७ ककुम्मतीगर्भोपरिष्टद बृहती। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Throw off the Enemies

    Meaning

    The teeth of violent beasts are broken, their back too is broken. Let the crocodile be down. Let the sleeping tiger too stay down, allow it not to prowl around.

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    Translation

    May the teeth of the beast be worn out; may his horns, and his ribs also be weakened. O traveller, may the alligator keep away from your view and may the beast, that sleeps in the day, pass by the path far below.

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    Translation

    Let the teeth of ferocious beasts be broken off and let be shattered his ribs, let go down the water-lizard and let go down the slumbering lion.

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    Translation

    Let the beast's teeth be broken off, shivered and shattered be his ribs. Let lizard come down and not ascend thy house-top. Let the wild beast in ambush be subdued by thee.

    Footnote

    Thieves tie a rope with the tail of a lizard, and throw that upon the roof of a house, and taking hold of the rope, themselves go up. The walls of the house should be greasy so that the lizard may fall down and not go up.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(मूर्णाः) मुर्व बन्धने-राल्लोपः। पा० ६।४।२१। इति वकारलोपः। रदाभ्यां निष्ठातो नः पूर्वस्य च दः। पा० ८।२।४२। इति तस्य नः। बद्धाः। कुण्ठिताः (मृगस्य) अ० २।३६।४। अन्वेषणशीलस्य। पशोः। गोधायाः (दन्ताः) हसिमृग्रिण्वामिदमि०। उ० ३।८६। इति दमु उपशमे-तन्। रदनाः। दशनाः (अपि-शीर्णाः) शॄ हिंसने-क्त। हिंसिताः। विदीर्णाः। त्रोटिताः (उ) अपि (पृष्टयः) पृषु सेके-क्तिच्। पर्शवः। पार्श्वास्थीनि (निम्रुक्) नि+म्रुचु गतौ-क्विप्। नीचगतिः (ते) तव। चोरस्य (गोधा) हलश्च। पा० ३।३।१२१। इति गुध परिवेष्टने-घञ्। टाप्। धनुर्गुणाघातवारणाय प्रकोष्ठबद्धा चर्मपट्टिका। जन्तुविशेषः (भवतु) (नीचा) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति नीचैः डा। नीचैः (अयत्) अय गतौ लेट्। अडागमः। अयताम् गच्छतु (शशयुः) भृमृशीङ्तॄ० उ० १।७। इति शीङ् स्वप्ने-उ। बाहुलकाद् द्विर्वचनम्। शयुः शयानः। निरुद्यमः (मृगः) पशुः ॥

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