अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 5
ऋषिः - अथर्वा
देवता - रुद्रः, व्याघ्रः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
53
यो अ॒द्य स्ते॒न आय॑ति॒ स संपि॑ष्टो॒ अपा॑यति। प॒थाम॑पध्वं॒सेनै॒त्विन्द्रो॒ वज्रे॑ण हन्तु॒ तम् ॥
स्वर सहित पद पाठय: । अ॒द्य । स्ते॒न: । आ॒ऽअय॑ति । स: । सम्ऽपि॑ष्ट: । अप॑ । अ॒य॒ति॒ । प॒थाम् । अ॒प॒ऽध्वं॒सेन॑ । ए॒तु॒ । इन्द्र॑: । वज्रे॑ण । ह॒न्तु॒ । तम् ॥३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
यो अद्य स्तेन आयति स संपिष्टो अपायति। पथामपध्वंसेनैत्विन्द्रो वज्रेण हन्तु तम् ॥
स्वर रहित पद पाठय: । अद्य । स्तेन: । आऽअयति । स: । सम्ऽपिष्ट: । अप । अयति । पथाम् । अपऽध्वंसेन । एतु । इन्द्र: । वज्रेण । हन्तु । तम् ॥३.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वैरी के नाश का उपदेश।
पदार्थ
(यः स्तेनः) जो कोई चोर (अद्य) आज (आयति) आवे, (संपिष्टः) चूर-चूर किया हुआ (सः) वह (अप अयति) हट जावे और (पथाम्) मार्गों के (अपध्वंसेन) विनाश से (एतु) चला जावे, (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् प्रतापी मनुष्य (वज्रेण) वज्र से (तम्) उसको (हन्तु) मार डाले ॥५॥
भावार्थ
मनुष्य घर और रक्षकों का ऐसा प्रबन्ध करें कि यदि चोर आदि आ भी जावे तो मार्ग भूलकर निराश होकर भागने लगे, और राजा पकड़ कर उसे यथोचित दण्ड देवे ॥५॥
टिप्पणी
५−(यः) (अद्य) अस्मिन् दिने (स्तेनः) म० ४। चोरः (आ-अयति) अय गतौ। आगच्छतु (सः) चोरः (संपिष्टः) पिष्लृ संचूर्णने-क्त। सर्वथा चूर्णीकृतः (अप-अयति) निर्गच्छतु (पथाम्) मार्गाणाम् (अपध्वंसेन) ध्वन्सु गतौ, अधः पतने-घञ्। विनाशेन (एतु) गच्छतु (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् पुरुषः (वज्रेण) अस्त्रभेदेन (हन्तु) मारयतु (तम्) चोरम् ॥
विषय
चोर का निरादर, मार्गध्वंसक को वध-दण्ड
पदार्थ
१. (अद्य) = आज (यः) = जो भी (स्तेन:) = चोर (आयति) = आता है, (स:) = वह (संपिष्टः) = सम्यक् पिसा हुआ-चूर्णीभूत-सा किया हुआ (अपायति) = दूर जाता है। चोर को सारा जनसमाज सामूहिकरूप से दण्डित करनेवाला हो, उन्हें कोई आश्रय देनेवाला न हो। २. जो कोई भी (पथाम्) = मार्गों के नियमों के (अपध्वंसेन) = बुरी तरह ध्वंस से-नियों के भंग से (एतु) = गति करे, (इन्द्र:) = राजा (तम्) = उसे (व्रजेण) = वज्र के द्वारा-बिनाशक शस्त्र के द्वारा (हन्तु) = नष्ट करे । नियमों को बुरी तरह तोड़नेवाले को राजा वध-दण्ड दें।
भावार्थ
चोर को जनसमाज उचित दण्ड देता हुआ चोरी आदि से निरुत्साहित करे । सदा उलटे मार्ग से चलनेवाले को राजा वध-दण्ड दें।
भाषार्थ
(अद्य) आज (यः स्तेनः) जो चोर (आयति) आता है (सः) वह (संपिष्टः) सम्यक्-पिसा हुआ (अपायति) वापस जाता है। (पथाम्) मार्गों में से (अपध्वंसेन) टूटे-फूटे अलग मार्ग द्वारा (एतु) वह आया जाया करे (इन्द्रः) सम्राट् या राजा (तम्) उसे (वज्रेण) न्याय-वज्र द्वारा (हन्तु) मार दे, शक्तिबिहीन कर दे।
टिप्पणी
[यदि किसी दिन चोर, चोरी के लिए, किसी घर में घुस आये, तो घर के लोग उसे खूब मारें, कि बह पिसा-सदृश होकर वापस जाय। तदनन्तर उसे न्यायालय में पेश कर, राज्यव्यवस्थानुसार दण्डित करना चाहिए, और उसे आज्ञा देनी चाहिए कि वह राजमार्गों से न चलकर अलग टूटे-फूटे मार्ग द्वारा आया-जाया करे, ताकि प्रजाजनों को ज्ञापित हो जाय कि वह चोर है।]
भावार्थ
(अद्य) आज जो (स्तेनः) चोर रूप से (आयति) आता है (सः) वह (सं पिष्टः) खूब दण्डित कर दिया जाय तो (अप आयति) वह अपने बुरे मार्ग से हट जाता है। अर्थात् जब कोई चोर पकड़ा जाय तो उसे खूब कड़ा दण्ड देना चाहिये। यदि वह (पथाम्) मार्गों में जो (अपध्वंसेन) बुरे, पुराने टूटे खण्डहर होते हैं उनमें (एतु*) जाये तो वहां भी (इन्द्रः) राजा (तम्) उस चोर को पकड़ २ कर (हन्तु) विनाश करे । पदपाठ में ‘अपध्वंसेन’ एक पद होने पर भी सायण ने “ध्वंसेन” “अप” ‘एतु’, ऐसा छेद किया है सो असंगत है।
टिप्पणी
सम्भावनायां लोट्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। रुद्र उत व्याघ्नो देवता। १ पथ्यापंक्ति, २, ४-६ अनुष्टुभः, ३ गायत्री, ७ ककुम्मतीगर्भोपरिष्टद बृहती। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Throw off the Enemies
Meaning
The thief that comes up today must go, totally disabled and crushed, by a lost (distant) path. Let Indra, the ruler, punish and correct him by the thunderbolt of justice and dispensation.
Translation
Whosoever thief comes today, he will have to run away badly mauled. May he go along the path of destruction. May the resplendent one smite him with his bolt (adamantine weapon).
Translation
The thief who comes near today, being crushed leaves out, let him go by the demolished pathway and may the ruler slay him with his weapon.
Translation
The thief who cometh near today, departeth bruised and crushed to bits. If he goes, If he goes by a dreary, desolate, deserted path, let the king slay him with his bolt.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(यः) (अद्य) अस्मिन् दिने (स्तेनः) म० ४। चोरः (आ-अयति) अय गतौ। आगच्छतु (सः) चोरः (संपिष्टः) पिष्लृ संचूर्णने-क्त। सर्वथा चूर्णीकृतः (अप-अयति) निर्गच्छतु (पथाम्) मार्गाणाम् (अपध्वंसेन) ध्वन्सु गतौ, अधः पतने-घञ्। विनाशेन (एतु) गच्छतु (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् पुरुषः (वज्रेण) अस्त्रभेदेन (हन्तु) मारयतु (तम्) चोरम् ॥
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