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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 5

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 5/ मन्त्र 2
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - वृषभः, स्वापनम् छन्दः - भुरिगनुष्टुप् सूक्तम् - स्वापन सूक्त

    न भूमिं॒ वातो॒ अति॑ वाति॒ नाति॑ पश्यति॒ कश्च॒न। स्त्रिय॑श्च॒ सर्वाः॑ स्वा॒पय॒ शुन॒श्चेन्द्र॑सखा॒ चर॑न् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । भूमि॑म् । वात॑: । अति॑ । वा॒ति॒ । न । अति॑ । प॒श्य॒ति॒ । क: । च॒न । स्रिय॑: । च॒ । सर्वा॑: । स्वा॒पय॑ । शुन॑: । च॒ । इन्द्र॑ऽसखा । चर॑न् ॥५.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    न भूमिं वातो अति वाति नाति पश्यति कश्चन। स्त्रियश्च सर्वाः स्वापय शुनश्चेन्द्रसखा चरन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । भूमिम् । वात: । अति । वाति । न । अति । पश्यति । क: । चन । स्रिय: । च । सर्वा: । स्वापय । शुन: । च । इन्द्रऽसखा । चरन् ॥५.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 5; मन्त्र » 2

    पदार्थ -

    १. राष्ट्र में नगरों का निर्माण इसप्रकार हो कि (वातः) = वायु (भूमि न अतिबाति) = भूमि पर बहुत तीव्र गति से-आँधी आदि के रूप में बहनेवाला न हो। नगरों के चारों ओर एक-दो किलोमीटर चौड़े बगीचे हों। ये वायु के वेग को रोकने में सहायक होंगे। २. घरों का निर्माण भी इसप्रकार हो कि (कश्चन) = कोई भी (न अतिपश्यति) = ऊपर से एक-दूसरे घरवालों को देख न सके। सब घरवाले कुछ गुप्तता अनुभव कर सकें। ३. हे वायो! (इन्द्रसखा) = इन जितेन्द्रिय पुरुषों का मित्रभूत ) = बहता हुआ तू (सर्वाः स्त्रियः) = सब स्त्रियों को (स्वापय) = सुला दे, (च) = और (शुनः च) = कुत्तों को भी सुला दें। कुत्तों का भौंकना भी नींद में विघ्न का कारण न बन जाए।

    भावार्थ -

    नगरों व घरों का निर्माण इसप्रकार हो कि तेज हवा के झोके न लगें तथा लोगों को अपने घरों में कुछ एकान्त-सा प्रतीत हो, कुत्तों का भौंकना भी नींद के विघ्न का कारण न बने।

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