अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 122/ मन्त्र 2
सूक्त - भृगु
देवता - विश्वकर्मा
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - तृतीयनाक सूक्त
त॒तं तन्तु॒मन्वेके॑ तरन्ति॒ येषां॑ द॒त्तं पित्र्य॒माय॑नेन। अ॑ब॒न्ध्वेके॒ दद॑तः प्र॒यच्छ॑न्तो॒ दातुं॒ चेच्छिक्षा॒न्त्स स्व॒र्ग ए॒व ॥
स्वर सहित पद पाठत॒तम् । तन्तु॑म् । अनु॑ । एके॑ । त॒र॒न्ति॒ । येषा॑म् । द॒त्तम् । पित्र्य॑म् । आ॒ऽअय॑नेन । अ॒ब॒न्धु । एके॑ । दद॑त: । प्र॒ऽयच्छ॑न्त: । दातु॑म् । च॒ । इत् । शिक्षा॑न् । स: । स्व॒:ऽग: । ए॒व ॥१२२.२॥
स्वर रहित मन्त्र
ततं तन्तुमन्वेके तरन्ति येषां दत्तं पित्र्यमायनेन। अबन्ध्वेके ददतः प्रयच्छन्तो दातुं चेच्छिक्षान्त्स स्वर्ग एव ॥
स्वर रहित पद पाठततम् । तन्तुम् । अनु । एके । तरन्ति । येषाम् । दत्तम् । पित्र्यम् । आऽअयनेन । अबन्धु । एके । ददत: । प्रऽयच्छन्त: । दातुम् । च । इत् । शिक्षान् । स: । स्व:ऽग: । एव ॥१२२.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 122; मन्त्र » 2
विषय - भूतयज्ञ
पदार्थ -
१. (येषाम्) = जिनका (पित्र्यम्) = पिता से प्राप्त धन (आयनेन) = [आ+अय गती] आगम-वेदशास्त्र के अनुसार यज्ञों में (दत्तम्) = दिया गया है, ऐसे (एके) = विलक्षण (पुरुषं ततं तन्तुम् अनु) = विस्तृत पुत्र-पौत्रादिलक्षण सन्तान-तन्तु में प्रविष्ट होकर (तरन्ति) = इन ऋणों से अनुण हो ही जाते हैं। पिता से प्राप्त धन को विलास में खर्च न करके जो वेदोपदिष्ट यज्ञादि में विनियुक्त करते हैं, वे सन्तानों में अनुप्रविष्ट होकर भी इन ऋणों से तरने का ध्यान रखते हैं। २. (एके) = कई (अबन्धु) = [अबन्धवे] अनाथों के लिए (ददत:) = देते हुए और (प्रयच्छन्तः) = खूब ही देनेवाले होते हैं और इसप्रकार (चेत्) = यदि वे (दातं शिक्षान्) = देने के लिए समर्थ होने की इच्छा करते हैं, अर्थात् यदि उनकी इन अनाथों के पालने की वृत्ति बनी रहती है तो उनका (सः स्वर्ग: एव) = वह भूतयज्ञ स्वर्ग ही है, अर्थात् इस भूतयज्ञ को करने से उनका जीवन स्वर्ग का जीवन बना रहा है-न व्यसन आते हैं, न रोग। वे जीवन में अमर [नीरोग बने रहते है]।
भावार्थ -
हम पिता से प्राप्त धनों को यज्ञों में ही विनियुक्त करें। यदि उसे विलास में व्यय करेंगे तो सन्तानों की वृत्ति भी विलासी ही बनेगी और यज्ञ विच्छन्न हो जाएंगे। अनाथों के हित के लिए देते हुए और इस दान के लिए सदा सशक्त होने की इच्छा करते हुए हम स्वर्गापम सुख को अनुभव करते हैं। ऐसे जीवन में न व्यसन होते हैं, न रोग। यही भूतयज्ञ है।
इस भाष्य को एडिट करें