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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 128/ मन्त्र 4
सूक्त - अथर्वाङ्गिरा
देवता - सोमः, शकधूमः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - राजा सूक्त
यो नो॑ भद्रा॒हमक॑रः सा॒यं नक्त॑मथो॒ दिवा॑। तस्मै॑ ते नक्षत्रराज॒ शक॑धूम॒ सदा॒ नमः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठय: । न॒: । भ॒द्र॒ऽअ॒हम् । अक॑र: । सा॒यम् । नक्त॑म् । अथो॒ इति॑ । दिवा॑ । तस्मै॑ । ते॒ । न॒क्ष॒त्र॒ऽरा॒ज॒ । शक॑ऽधूम । सदा॑ । नम॑: ॥१२८.४॥
स्वर रहित मन्त्र
यो नो भद्राहमकरः सायं नक्तमथो दिवा। तस्मै ते नक्षत्रराज शकधूम सदा नमः ॥
स्वर रहित पद पाठय: । न: । भद्रऽअहम् । अकर: । सायम् । नक्तम् । अथो इति । दिवा । तस्मै । ते । नक्षत्रऽराज । शकऽधूम । सदा । नम: ॥१२८.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 128; मन्त्र » 4
विषय - शकधूम को प्रणाम
पदार्थ -
१. हे (शकधूम) = शक्ति के द्वारा शत्रुओं को कम्पित करनेवाले (नक्षत्रराज) = अपना त्राण स्वयं न कर सकनेवाली प्रजाओं के शासक। (य:) = जो आप (नः) = हमारे लिए (सायं नक्तम् अथो दिवा) = सायं, रात्रि और दिन में (भद्राहम् अकर:) = कल्याण करते हैं (तस्मै ते) = उस आपके लिए हम (सदा नमः) = सदा नमस्कार करते हैं।
भावार्थ -
राजा प्रजाओं का रक्षण करता है। प्रजा को चाहिए कि इस राजा का उचित आदर करे।
विशेष -
सुरक्षित राष्ट्र में स्वस्थ वृत्ति से आगे बढ़नेवाला यह स्थिर चित्तवाला [अथर्वा] तथा अङ्ग-प्रत्यङ्ग में शक्ति के रसवाला [अंगिराः] 'अथर्वाङ्गिराः' अगले चार सूक्तों का ऋषि है।