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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 24/ मन्त्र 2
यन्मे॑ अ॒क्ष्योरा॑दि॒द्योत॒ पार्ष्ण्योः॒ प्रप॑दोश्च॒ यत्। आप॒स्तत्सर्वं॒ निष्क॑रन्भि॒षजां॒ सुभि॑षक्तमाः ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । मे॒ । अ॒क्ष्यो: । आ॒ऽदि॒द्योत॑ । पार्ष्ण्यो॑: । प्रऽप॑दो: । च॒ । यत् । आप॑: । तत् । सर्व॑म् । नि: । क॒र॒न् । भि॒षजा॑म् । सुभि॑षक्ऽतमा: ॥२४.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यन्मे अक्ष्योरादिद्योत पार्ष्ण्योः प्रपदोश्च यत्। आपस्तत्सर्वं निष्करन्भिषजां सुभिषक्तमाः ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । मे । अक्ष्यो: । आऽदिद्योत । पार्ष्ण्यो: । प्रऽपदो: । च । यत् । आप: । तत् । सर्वम् । नि: । करन् । भिषजाम् । सुभिषक्ऽतमा: ॥२४.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 24; मन्त्र » 2
विषय - जल से जलन का निराकरण
पदार्थ -
१. (यत्) = जो रोग (मे) = मेरी (अक्ष्यो:) = आँखों में (पार्ष्णयो:) = एडियों में (च) = और (यत्) = जो (प्रपदो:) = पौव के अग्नभाग में (आदिद्योत) = जलन-सी पैदा करता है, (तत् सर्वम्) = उस सब रोग को (आपः) = जल (निष्करन्) = दूर करते हैं। २. ये जल वस्तुत: (भिषजां सुभिषक्तमा:) = वैद्यों में सर्वोत्तम वैद्य हैं।
भावार्थ -
किन्हीं रोगों में आँखें, एडियों व पाँवों के अग्रभाग में जलन उत्पन्न होती है। जलों के प्रयोग से यह जलन दूर की जाती है। जल इसके सर्वोत्तम औषध हैं।
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