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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 52

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 52/ मन्त्र 3
    सूक्त - भागलि देवता - सूर्यः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - भैषज्य सूक्त

    आ॑यु॒र्ददं॑ विप॒श्चितं॑ श्रु॒तां कण्व॑स्य वी॒रुध॑म्। आभा॑रिषं वि॒श्वभे॑षजीम॒स्यादृष्टा॒न्नि श॑मयत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒यु॒:ऽदद॑म् । वि॒प॒:ऽचित॑म् । श्रु॒ताम् । कण्व॑स्य । वी॒रुध॑म् । आ । अ॒भा॒रि॒ष॒म् । वि॒श्वऽभे॑षजीम् । अ॒स्य । अ॒दृष्टा॑न् । नि । श॒म॒य॒त् ॥५२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आयुर्ददं विपश्चितं श्रुतां कण्वस्य वीरुधम्। आभारिषं विश्वभेषजीमस्यादृष्टान्नि शमयत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आयु:ऽददम् । विप:ऽचितम् । श्रुताम् । कण्वस्य । वीरुधम् । आ । अभारिषम् । विश्वऽभेषजीम् । अस्य । अदृष्टान् । नि । शमयत् ॥५२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 52; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    १. (कण्वस्य) = मेधावी पुरुष की इस (आयुर्ददम्) = दीर्घजीवन को प्राप्त करनेवाली (विपश्चितम्) = रोग-शमनोपाय को जाननेवाली (श्रुताम्) = प्रसिद्ध (विश्वभेषजीम्) = सब रोगसमूहों को शान्त करनेवाली (वीरुधम्) = विविध उन्नतियों की कारणभूत इस वेदज्ञानरूप वल्ली को मैं (आभारिषम्) = प्राप्त करता हूँ। २. लाकर प्रयुज्मान यह वीरुत् (अस्य) = इस रोग के (अदृष्टान्) = शरीर मध्यवर्ती द्रष्टुमशक्य रोगों को भी (निशमयत्) = शान्त करे।

    भावार्थ -

    हम वेदज्ञान को प्राप्त करें और सब रोगों को अपने से दूर करें। इस बेदविद्या को विश्वभेषजी जानें।

    विशेष-विश्वभेषजी वेदविद्या द्वारा पूर्ण नीरोग बना हुआ यह व्यक्ति 'बृहच्छुक्रः अतिशयित वीर्यवाला-शक्तिशाली होता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है -

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