Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 55

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 55/ मन्त्र 3
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रुद्रः छन्दः - जगती सूक्तम् - सौम्नस्य सूक्त

    इ॑दावत्स॒राय॑ परिवत्स॒राय॑ संवत्स॒राय॑ कृणुता बृ॒हन्नमः॑। तेषां॑ व॒यं सु॑म॒तौ य॒ज्ञिया॑ना॒मपि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒दा॒व॒त्स॒राय॑ । प॒रि॒ऽव॒त्स॒राय॑ । स॒म्ऽव॒त्स॒राय॑ । कृ॒णु॒त॒ । बृ॒हत् । नम॑: । तेषा॑म् । व॒यम् । सु॒ऽम॒तौ । य॒ज्ञिया॑नाम् । अपि॑ । भ॒द्रे। सौ॒म॒न॒से । स्या॒म॒ ॥५५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इदावत्सराय परिवत्सराय संवत्सराय कृणुता बृहन्नमः। तेषां वयं सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इदावत्सराय । परिऽवत्सराय । सम्ऽवत्सराय । कृणुत । बृहत् । नम: । तेषाम् । वयम् । सुऽमतौ । यज्ञियानाम् । अपि । भद्रे। सौमनसे । स्याम ॥५५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 55; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    हम अपने जीवन में सर्वप्रथम अग्रगति का पाठ पढ़ें-हमारे जीवन का ध्येय 'आरोहणम्, 'आक्रमणम्' हो। फिर हम सूर्य की भाँति ज्ञान से दीप्त बनने के लिए यत्नशील हों और अपने मनों को चन्द्र की भाँति सौम्य बनाएँ। हमारे जीवन का लक्ष्य 'सुमति व भद्र सौमनस' को प्राप्त करना हो।

    भावार्थ -

    इसप्रकार जीवन का विकास करते हुए हम 'शन्ताति' बनें-शान्ति का विस्तार करनेवाले। यह शन्ताति ही अगले दो सूक्तों का ऋषि है -

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top