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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 59/ मन्त्र 2
शर्म॑ यच्छ॒त्वोष॑धिः स॒ह दे॒वीर॑रुन्ध॒ती। कर॒त्पय॑स्वन्तं गो॒ष्ठम॑य॒क्ष्माँ उ॒त पूरु॑षान् ॥
स्वर सहित पद पाठशर्म॑ । य॒च्छ॒तु॒ । ओष॑धि: । स॒ह । दे॒वी: । अ॒रु॒न्ध॒ती । कर॑त् । पय॑स्वन्तम् । गो॒ऽस्थम् । अ॒य॒क्ष्मान् । उ॒त । पुरु॑षान् ॥५९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
शर्म यच्छत्वोषधिः सह देवीररुन्धती। करत्पयस्वन्तं गोष्ठमयक्ष्माँ उत पूरुषान् ॥
स्वर रहित पद पाठशर्म । यच्छतु । ओषधि: । सह । देवी: । अरुन्धती । करत् । पयस्वन्तम् । गोऽस्थम् । अयक्ष्मान् । उत । पुरुषान् ॥५९.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 59; मन्त्र » 2
विषय - पयस्वान गोष्ठ
पदार्थ -
१. (देवी: सह अरुन्धती) = दिव्य गुणों से सम्पन्न यह अरुन्धती (ओषधि:) = ओषधि (शर्म यच्छन्तु) = हमारे सब पशुओं के लिए सुख दे। २. यह अरुन्धती ओषधि सब पशुओं को नीरोगता के द्वारा (गोष्ठम्) = हमारे गो-निवास देश को (पयस्वन्तम् करत्) = प्रभूत दुग्ध से युक्त करे, (उत) = और इस गोदुग्ध के द्वारा (पूरुषान्) = घर के सब व्यक्तियों को (अयक्ष्मान्) = नीरोग करे।
भावार्थ -
अरुन्धती ओषधि हमारे पशुओं को नोरोग बनाकर हमारे घरों को दूध से भर दे। इस गोदुग्ध द्वारा यह हमारे सब मनुष्यों को स्वस्थ बनाए।
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