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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 62/ मन्त्र 2
वै॑श्वान॒रीं सू॒नृता॒मा र॑भध्वं॒ यस्या॒ आशा॑स्त॒न्वो वी॒तपृ॑ष्ठाः। तया॑ गृ॒णन्तः॑ सध॒मादे॑षु व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥
स्वर सहित पद पाठवै॒श्वा॒न॒रीम् । सू॒नृता॑म् । आ । र॒भ॒ध्व॒म् । यस्या॑: । आशा॑: । त॒न्व᳡: । वी॒तऽपृ॑ष्ठा: । तया॑ । गृ॒णन्त॑: । स॒ध॒ऽमादे॑षु । व॒यम् । स्या॒म॒ । पत॑य: । र॒यी॒णाम् ॥६२.२॥
स्वर रहित मन्त्र
वैश्वानरीं सूनृतामा रभध्वं यस्या आशास्तन्वो वीतपृष्ठाः। तया गृणन्तः सधमादेषु वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥
स्वर रहित पद पाठवैश्वानरीम् । सूनृताम् । आ । रभध्वम् । यस्या: । आशा: । तन्व: । वीतऽपृष्ठा: । तया । गृणन्त: । सधऽमादेषु । वयम् । स्याम । पतय: । रयीणाम् ॥६२.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 62; मन्त्र » 2
विषय - वैश्वानरी वाणी का अध्ययन
पदार्थ -
१. (वैश्वानरीम्) = सब मनुष्यों का हित करनेवाले प्रभु से दी गई (सूनृताम्) = उत्तम, दुःखों का परिहाण करनेवाली व सत्य [सु+ऊन+ऋत] वेदवाणी को (आरभध्वम्) = आरम्भ करो, इसका अध्ययन आरम्भ करो, (यस्याः) = जिस वेदवाणी की (आशा:) = दिशाएँ (तन्व:) = विस्तारवाली हैं तथा (वीतपृष्ठा:) = दीस व विस्तीर्ण पृष्ठवाली हैं-इस वेदवाणी का ज्ञान अनन्त व दीस है। २. (तया) = उस वेदवाणी से (सधमादेषु) = आनन्दपूर्वक मिलकर बैठने के अवसरों पर (गृणन्त:) = प्रभुस्तवन करते हुए (वयम्) = हम (रयीणाम्) = धनों के (पतयः स्याम) = पति हों-दास न बन जाएँ।
भावार्थ -
हम वेदवाणी का अध्ययन करें। यह वेदवाणी अनन्त ज्ञानवाली है। मिलकर बैठने के अवसरों पर इस वाणी द्वारा हम प्रभुस्तवन करें और इस संसार में धनों के दास न बनकर उनके स्वामी बनें।
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