Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 27/ मन्त्र 1
इडै॒वास्माँ अनु॑ वस्तां व्र॒तेन॒ यस्याः॑ प॒दे पु॒नते॑ देव॒यन्तः॑। घृ॒तप॑दी॒ शक्व॑री॒ सोम॑पृ॒ष्ठोप॑ य॒ज्ञम॑स्थित वैश्वदे॒वी ॥
स्वर सहित पद पाठइडा॑ । ए॒व । अ॒स्मान् । अनु॑ । व॒स्ता॒म् । व्र॒तेन॑ । यस्या॑: । प॒दे । पु॒नते॑ । दे॒व॒ऽयन्त॑: । घृ॒तऽप॑दी । शक्व॑री । सोम॑ऽपृष्ठा । उप॑ । य॒ज्ञम् । अ॒स्थि॒त॒ । वै॒श्व॒ऽदे॒वी ॥२८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
इडैवास्माँ अनु वस्तां व्रतेन यस्याः पदे पुनते देवयन्तः। घृतपदी शक्वरी सोमपृष्ठोप यज्ञमस्थित वैश्वदेवी ॥
स्वर रहित पद पाठइडा । एव । अस्मान् । अनु । वस्ताम् । व्रतेन । यस्या: । पदे । पुनते । देवऽयन्त: । घृतऽपदी । शक्वरी । सोमऽपृष्ठा । उप । यज्ञम् । अस्थित । वैश्वऽदेवी ॥२८.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 27; मन्त्र » 1
विषय - इडा
पदार्थ -
१. (इडा) = यह वेदवाणी एव-हौ (अस्मान् व्रतेन अनुवस्ताम्) = हमें उत्तम कर्मों से आच्छादित करनेवाली हो, अर्थात् इस वेदज्ञान को प्राप्त करके हम सदा उत्तम कर्मों को करनेवाले हों। यह वेदवाणी वह है, (यस्या:) = जिसके कि पदे चरणों में (देवयन्तः) = प्रकाशमय प्रभु को प्राप्त करने की कामनाबाले पुरुष (पुनते) = अपने को सदा पवित्र करते हैं। २. (घृतपदी) = [घृतं पदे यस्याः] जिसके एक-एक शब्द में ज्ञानदीसि है, (शक्वरी) = जो हमें शक्तिशाली बनाती है, (सोमपृष्ठा) = [पृक्ष-to sprinkle] हमारे जीवन में सोम का सेचन करनेवाली है, अर्थात् वेदाभ्यास से वासना-विलय होकर सोम का शरीर में रक्षण होता है, वह (वैश्वदेवी) = सब दिव्य गुणों को जन्म देनेवाली वेदवाणी (यज्ञं उपास्थित) = उस पूजनीय प्रभु के समीप उपस्थित होती है, हमें प्रभु के समीप प्राप्त कराती है। यह वेदवाणी प्रभु का ही तो पूजन करती है [उपतिष्ठते] (सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति')।
भावार्थ -
यह वेदवाणी हमें उत्तम कर्मों में प्रेरित करती हुई, पवित्र जीवनवाला बनाती है। यह 'ज्ञान, शक्ति व सोम का सेचन' करनेवाली है। सब दिव्यगुणों को प्राप्त कराती हुई यह हमें प्रभु के समीप उपस्थित करती है।
इस भाष्य को एडिट करें