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अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 40/ मन्त्र 1
सूक्त - प्रस्कण्वः
देवता - सरस्वान्
छन्दः - भुरिगुष्णिक्
सूक्तम् - सरस्वान् सूक्त
यस्य॑ व्र॒तं प॒शवो॒ यन्ति॒ सर्वे॒ यस्य॑ व्र॒त उ॑पतिष्ठन्त॒ आपः॑। यस्य॑ व्र॒ते पु॑ष्ट॒पति॒र्निवि॑ष्ट॒स्तं सर॑स्वन्त॒मव॑से हवामहे ॥
स्वर सहित पद पाठयस्य॑ । व्र॒तम् । प॒शव॑: । यन्ति॑ ।सर्वे॑ । यस्य॑ । व्र॒ते । उ॒प॒ऽतिष्ठ॑न्ते । आप॑: । यस्य॑ । व्र॒ते । पु॒ष्ट॒ऽपति॑: । निऽवि॑ष्ट: । तम् । सर॑स्वन्तम् । अव॑से । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥४१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्य व्रतं पशवो यन्ति सर्वे यस्य व्रत उपतिष्ठन्त आपः। यस्य व्रते पुष्टपतिर्निविष्टस्तं सरस्वन्तमवसे हवामहे ॥
स्वर रहित पद पाठयस्य । व्रतम् । पशव: । यन्ति ।सर्वे । यस्य । व्रते । उपऽतिष्ठन्ते । आप: । यस्य । व्रते । पुष्टऽपति: । निऽविष्ट: । तम् । सरस्वन्तम् । अवसे । हवामहे ॥४१.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 40; मन्त्र » 1
विषय - प्रभु के व्रत में
पदार्थ -
१. (यस्य व्रतम्) = जिसके व्रत का (सर्वे पशवः यन्ति) = सब पशु अनुगमन करते हैं, अर्थात् प्रभु ने सब पशुओं में वासना की स्थापना की है, उस वासना के अनुसार सब पशु कर्मों से प्रेरित होते है, (यस्य व्रते) = जिसके व्रत में (आपः उपतिष्ठन्ते) = जल हमारे समीप उपस्थित होते हैं। ये जल बहते-बहते समुद्र में जा मिलते हैं, वहाँ से सूर्य-किरणों द्वारा बाष्पीभूत होकर अन्तरिक्ष में पहुँचते हैं और वृष्टि द्वारा हमें फिर प्राप्त होते हैं। २. (यस्य व्रते) = जिसके नियम में (पुष्टपतिः) = सब पोषणों का स्वामी यह सूर्य-सब प्राणशक्तियों को अपनी किरणों में लिये हुए यह सूर्य, (निविष्ट:) = अपने मार्ग में विद्यमान है, (तम्) = उस (सरस्वन्तम्) = महान् विज्ञानराशि प्रभु को (अवसे हवामहे) = अपने रक्षण के लिए पुकारते हैं।
भावार्थ -
सब पशु. जल व सूर्य जिस प्रभु के निर्धारित व्रतों में चल रहे हैं। उस विज्ञानस्वरूप प्रभु को हम अपने रक्षण के लिए पुकारते हैं।
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