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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 97

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 97/ मन्त्र 4
    सूक्त - अथर्वा देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - यज्ञ सूक्त

    सु॒गा वो॑ देवाः॒ सद॑ना अकर्म॒ य आ॑ज॒ग्म सव॑ने मा जुषा॒णाः। वह॑माना॒ भर॑माणाः॒ स्वा वसू॑नि॒ वसुं॑ घ॒र्मं दिव॒मा रो॑ह॒तानु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽगा । व॒: । दे॒वा॒: । सद॑ना । अ॒क॒र्म॒ । ये । आ॒ऽज॒ग्म । सव॑ने । मा॒ । जु॒षा॒णा: । वह॑माना: । भर॑माणा: । स्वा । वसू॑नि । वसु॑म् । घ॒र्मम् । दिव॑म् । आ । रो॒ह॒त॒ । अनु॑ ॥१०२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुगा वो देवाः सदना अकर्म य आजग्म सवने मा जुषाणाः। वहमाना भरमाणाः स्वा वसूनि वसुं घर्मं दिवमा रोहतानु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽगा । व: । देवा: । सदना । अकर्म । ये । आऽजग्म । सवने । मा । जुषाणा: । वहमाना: । भरमाणा: । स्वा । वसूनि । वसुम् । घर्मम् । दिवम् । आ । रोहत । अनु ॥१०२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 97; मन्त्र » 4

    पदार्थ -

    १. हे (देवा:) = देववृत्ति के पुरुषो! (व:) = आपके (सदनानि) = स्थानों को (सुगा अकर्म) = सुख से जाने योग्य करते हैं। उन आपके (ये) = जोकि (मा जुषाणा:) = मेरे प्रति प्रीतिवाले होते हुए (सवने आजग्म) = मेरे इस यज्ञ में आये हो। २. आप (स्वा वसूनि) = अपने ज्ञान-धनों को (वहमाना:) = हमें प्राप्त कराते हुए तथा (भरमाणा:) = हमारे लिए इन धनों का पोषण करते हुए (वसंघर्म दिवम् अनु आरोहत) = ऐश्वर्य, शक्ति व ज्ञान के अनुपात में उत्कृष्ट लोक में आरोहण करनेवाले बनो।

    भावार्थ -

    हमारे घरों में देववृत्ति के पुरुष आएँ। समय-समय पर होनेवाले यज्ञों में वे हमारे प्रति प्रीतिवाले होते हुए उपस्थित हों। हम उनके लिए सुखद स्थान की व्यवस्था करें। वे हमारे लिए ज्ञान-धनों को प्राप्त कराते हुए अपने ज्ञान व शक्ति के अनुसार उत्कृष्ट लोकों को प्राप्त करनेवाले हों।

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