अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 7
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - चतुष्पदा प्राजापत्या पङ्क्तिः
सूक्तम् - विराट् सूक्त
सोद॑क्राम॒त्सा म॑नु॒ष्याश॒नाग॑च्छ॒त्तां म॑नु॒ष्या अघ्नत॒ सा स॒द्यः सम॑भवत्।
स्वर सहित पद पाठसा । उत् । अ॒क्रा॒म॒त् । सा । म॒नु॒ष्या᳡न् । आ । अ॒ग॒च्छ॒त् । ताम् । म॒नु॒ष्या᳡: । अ॒घ्न॒त॒ । सा । स॒द्य: । सम् । अ॒भ॒व॒त् ॥१२.७॥
स्वर रहित मन्त्र
सोदक्रामत्सा मनुष्याशनागच्छत्तां मनुष्या अघ्नत सा सद्यः समभवत्।
स्वर रहित पद पाठसा । उत् । अक्रामत् । सा । मनुष्यान् । आ । अगच्छत् । ताम् । मनुष्या: । अघ्नत । सा । सद्य: । सम् । अभवत् ॥१२.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10;
पर्यायः » 3;
मन्त्र » 7
विषय - मनुष्यों का विराट् को प्राप्त होना
पदार्थ -
१. (सा) = वह विराट् (उदक्रामत्) = उत्क्रान्त हुई। (सा) = वह (मनुष्यान् आगच्छत्) = मनुष्यों को प्राप्त हुई। (मनुष्याः तां अघ्नत) = मनुष्य उस विराट् को प्राप्त हुए। (सा) = वह (सद्य:) = शीघ्र ही (सम् अभवत्) = उनके साथ हुई। (तस्मात्) = मनुष्यों के साथ उस विशिष्ट शासन-व्यवस्था के सम्पर्क के कारण, अर्थात् जब राष्ट्र में शासन-व्यवस्था अति उत्तम होती है तब शासक (मनुष्येभ्यः) = मनुष्यों के लिए (उभयद्य:) = दिन में दो बार-प्रातः वा सायं-(उपहरन्ति) = भोजन प्राप्त कराते हैं। (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार समझ लेता है कि दिन में दो बार ही भोजन करना ठीक है, (अस्य गृहे) = इसके घर में (उपहरन्ति) = सब प्राकृतिक शक्तियाँ आवश्यक पदार्थों को प्राप्त कराती हैं। यह दो बार भोजन करनेवाला स्वस्थ रहता है और सब आवश्यक पदार्थों को जुटाने में समर्थ होता है।
भावार्थ -
विशिष्ट शासन-व्यवस्था होने पर मनुष्य अग्निहोत्र की भाँति दिन में दो बार ही भोजन करते हुए स्वस्थ रहते हैं और सब आवश्यक पदार्थों को प्राप्त करने में समर्थ होते हैं।
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