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यजुर्वेद अध्याय - 11

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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 5
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - भुरिक्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    यु॒जे वां॒ ब्रह्म॑ पू॒र्व्यं नमो॑भि॒र्वि श्लोक॑ऽएतु प॒थ्येव सू॒रेः। शृ॒ण्वन्तु॒ विश्वे॑ऽअ॒मृत॑स्य पु॒त्राऽआ ये धामा॑नि दि॒व्यानि॑ त॒स्थुः॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒जे। वा॒म्। ब्रह्म॑। पू॒र्व्यम्। नमो॑भि॒रिति॒ नमः॑ऽभिः। वि। श्लोकः॑। ए॒तु॒। प॒थ्ये᳖वेति॑ प॒थ्या᳖ऽइव। सू॒रेः। शृ॒ण्वन्तु॑। विश्वे॑। अ॒मृत॑स्य। पु॒त्राः। आ। ये। धामा॑नि। दि॒व्यानि॑। त॒स्थुः ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युजे वाम्ब्रह्म पूर्व्यं नमोभिर्वि श्लोक एतु पथ्येव सूरेः । शृण्वन्तु विश्वेऽअमृतस्य पुत्राऽआ ये धामानि दिव्यानि तस्थुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    युजे। वाम्। ब्रह्म। पूर्व्यम्। नमोभिरिति नमःऽभिः। वि। श्लोकः। एतु। पथ्येवेति पथ्याऽइव। सूरेः। शृण्वन्तु। विश्वे। अमृतस्य। पुत्राः। आ। ये। धामानि। दिव्यानि। तस्थुः॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 5
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    पदार्थ -

    पदार्थ = ईश्वर की उपासना का उपदेष्टा गुरु और उसका ग्रहण करनेवाला शिष्य, इन दोनों के प्रति परमेश्वर का उपदेश है कि  ( पूर्व्यम् ब्रह्म ) = मैं सनातन ब्रह्म  ( वाम् ) = आप गुरु-शिष्य दोनों को  ( युजे ) = उपासना में जोड़ता हूँ, ( नमोभिः ) = नमस्कारों से  ( विश्लोकः ) = विविध कीर्ति  ( एतु ) = प्राप्त हो,  ( इव ) = जैसे  ( सूरे: ) = विद्वान् पुरुष को  ( पथ्या ) = मार्ग प्राप्त होता है,  ( ये विश्वे अमृतस्य पुत्राः ) = जो सब आप लोग, अमर जो मैं हूं उसके पुत्र हो, ( शृण्वन्तु ) = सुनो  ( दिव्यानि धामानि ) = दिव्य लोकों अर्थात् मोक्ष सुखों को  ( आ तस्थुः ) = [अधितिष्ठन्तु] प्राप्त होओ।

    भावार्थ -

    भावार्थ = परम कृपालु परमात्मा, अपने भक्तों पर कृपा करते हुए कहते हैं— हे अमृत के पुत्रो ! मेरे वचन को बड़े प्रेम से सुनो। आप लोग मुझको बारम्बार नमस्कार करते और मेरा ही मन में ध्यान धरते हो, इस लोक में कीर्ति और शान्ति को प्राप्त होओ । मोक्ष के अनन्त दिव्य सुख भी, आप लोगों के लिए ही नियत हैं, उनको प्राप्त होकर सदा आनन्द में रहो ।

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