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यजुर्वेद अध्याय - 9

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  • यजुर्वेद - अध्याय 9/ मन्त्र 1
    ऋषिः - इन्द्राबृहस्पती ऋषी देवता - सविता देवता छन्दः - स्वराट आर्षी त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
    1

    देव॑ सवितः॒ प्रसु॑व य॒ज्ञं प्रसु॑व य॒ज्ञप॑तिं॑ भगा॑य। दि॒व्यो ग॑न्ध॒र्वः के॑त॒पूः केतं॑ नः पुनातु वा॒चस्पति॒र्वाजं॑ नः स्वदतु॒ स्वाहा॑॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    देव॑। स॒वि॒त॒रिति॑ सवितः। प्र। सु॒व॒। य॒ज्ञम्। प्र। सु॒व॒। य॒ज्ञप॑ति॒मिति॑ य॒ज्ञऽप॑तिम्। भगा॑य। दि॒व्यः। ग॒न्ध॒र्वः। के॒त॒पूरिति॑ केत॒ऽपूः। केत॑म्। नः॒। पु॒ना॒तु॒। वा॒चः। पतिः॑। वाज॑म्। नः॒। स्व॒द॒तु॒। स्वाहा॑ ॥१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देव सवितः प्रसुव यज्ञम्प्रसुव यज्ञपतिम्भगाय । दिव्यो गन्धर्वः केतुपूः केतन्नः पुनातु वाचस्पतिर्वाजन्नः स्वदतु स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देव। सवितरिति सवितः। प्र। सुव। यज्ञम्। प्र। सुव। यज्ञपतिमिति यज्ञऽपतिम्। भगाय। दिव्यः। गन्धर्वः। केतपूरिति केतऽपूः। केतम्। नः। पुनातु। वाचः। पतिः। वाजम्। नः। स्वदतु। स्वाहा॥१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 9; मन्त्र » 1
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    पदार्थ -

    पदार्थ = ( देव ) = हे प्रकाशमय  ( सवितः ) = सब जगत् के उत्पादक सबके प्रेरक परमात्मन् ! ( यज्ञम् ) = यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों को  ( प्रसुव ) = अच्छे प्रकार चलाओ ।  ( यज्ञपतिम् ) = यज्ञ के रक्षक यजमान को  ( भगाय ) = ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए  ( प्रसुव ) = आगे बढ़ाओ  ( दिव्यः ) = विलक्षण अलौकिक आश्चर्यस्वरूप  ( गन्धर्वः ) = वेदविद्या के आधार  ( केतपू: ) = बुद्धि के पवित्र करनेवाले परमेश्वर  ( नः केतम् ) = हमारी बुद्धि को  ( पुनातु ) = शुद्ध करें  ( वाचः पतिः ) = वेदविद्या और वेदवाणी के पालक स्वामी प्रभु  ( नः वाचम् ) = हमारी  विद्या और वाणी को  ( स्वदतु ) = मधुर करें । 

    भावार्थ -

    भावार्थ = हे सदा प्रकाशस्वरूप, सब जगत् के स्रष्टा जगदीश ! आप कृपा करके यज्ञादि उत्तम कर्मों को सारे संसार में फैला दो । यज्ञ आदि कर्मों के करनेवालों के ऐश्वर्य को बढ़ाओ, जिसको देखकर यज्ञ आदि कर्मों के करने की रुचि सबके मन में उत्पन्न हो। आप आश्चर्यस्वरूप अपने प्रेमी जनों की बुद्धियों को शुद्ध करनेवाले हैं, कृपया हमारी बुद्धि को भी शुद्ध करें। आप वेदों के और वाणी के पालक हैं, हमारी वाणी को सत्य भाषण करनेवाली और मधुर बोलनेवाली बनावें ।

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