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  • यजुर्वेद - अध्याय 31/ मन्त्र 8
    ऋषिः - नारायण ऋषिः देवता - पुरुषो देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    तस्मा॒दश्वा॑ऽअजायन्त॒ ये के चो॑भ॒याद॑तः।गावो॑ ह जज्ञिरे॒ तस्मा॒त् तस्मा॑ज्जा॒ताऽअ॑जा॒वयः॑॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्मा॑त्। अश्वाः॑। अ॒जा॒य॒न्त॒। ये। के। च॒। उ॒भ॒याद॑तः। उ॒भ॒याद॑त॒ इत्यु॑भ॒यऽद॑तः ॥ गावः॑। ह॒। ज॒ज्ञि॒रे॒। तस्मा॑त्। तस्मा॑त्। जा॒ताः। अ॒जा॒वयः॑ ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्मादश्वाऽअजायन्त ये के चोभयादतः । गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाताऽअजावयः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तस्मात्। अश्वाः। अजायन्त। ये। के। च। उभयादतः। उभयादत इत्युभयऽदतः॥ गावः। ह। जज्ञिरे। तस्मात्। तस्मात्। जाताः। अजावयः॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 31; मन्त्र » 8
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    पदार्थ -

    पदार्थ = ( अश्वा: ) = घोड़े  ( ये के च ) = और जो कोई गधा, ऊँट आदि  ( उभायादतः ) = दोनों ओर दाँतोंवाले हैं  ( तस्मात् अजायन्त ) = उस परमेश्वर से उत्पन्न हुए  ( तस्मात् ) = उसी ईश्वर से  ( गावः ) = गौएँ भी  ( ह ) = निश्चय करके  ( जज्ञिरे ) = उत्पन्न हुईं  ( तस्मात् ) = उससे  ( अजाऽवय: ) = बकरी, भेड़  ( जाता: ) = उत्पन्न हुई हैं।

    भावार्थ -

    भावार्थ = उस जगद् रचयिता परमात्मा ने अपनी शक्ति से घोड़े, गधे, ऊँट आदि नीचे ऊपर दोनों ओर दांतोंवाले पशु उत्पन्न किये, एक ओर दांतोंवाले बैल , भैंस आदि प्राणी उत्पन्न किये। उसी प्रभु ने बकरी भेड़ आदि प्राणी उत्पन्न किये हैं । इस वेदमन्त्र में जो घोड़ा, गाय, बकरी और भेड़ इतने थोड़े, प्राणियों का वर्णन है, वह संसार के लाखों प्राणियों का उपलक्षन है, अर्थात्  वह सर्वशक्तिमान जगन्नियन्ता प्रभु, अपनी अचिन्त्य शक्ति से लाखों प्रकार के प्राणियों के शरीरों  को सृष्टि के आरम्भ में उत्पन्न और प्रलय काल में सबका संहार भी करता है।
     

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