Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 10 > सूक्त 8

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 8/ मन्त्र 33
    सूक्त - कुत्सः देवता - आत्मा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ज्येष्ठब्रह्मवर्णन सूक्त

    अ॑पू॒र्वेणे॑षि॒ता वाच॒स्ता व॑दन्ति यथाय॒थम्। वद॑न्ती॒र्यत्र॒ गच्छ॑न्ति॒ तदा॑हु॒र्ब्राह्म॑णं म॒हत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पू॒र्वेण॑ । इ॒षि॒ता: । वाच॑: । ता: । व॒द॒न्ति॒ । ता: । व॒द॒न्ति॒ । य॒था॒ऽय॒थम् । वद॑न्ती: । यत्र॑ । गच्छ॑न्ति । तत् । आ॒हु॒: । ब्रा॒ह्म॑णम् । म॒हत् ॥८.३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपूर्वेणेषिता वाचस्ता वदन्ति यथायथम्। वदन्तीर्यत्र गच्छन्ति तदाहुर्ब्राह्मणं महत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपूर्वेण । इषिता: । वाच: । ता: । वदन्ति । ता: । वदन्ति । यथाऽयथम् । वदन्ती: । यत्र । गच्छन्ति । तत् । आहु: । ब्राह्मणम् । महत् ॥८.३३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 8; मन्त्र » 33

    पदार्थ -

    शब्दार्थ = ( अपूर्वेण ) = जिससे पूर्व कोई नहीं है सबका मूल कारण जो परमात्मा उससे  ( इषिताः ) = प्रेरित  ( वाचः ) = वेदवाणी है  ( यथायथम् ) = यथायोग्य अर्थात् यथार्थ बात को  ( ता: ) = वे  ( वदन्ति ) = कहती हैं ।  ( वदन्तीः ) = निरूपण करनेवाली वेदवाणियाँ  ( यत्र गच्छन्ति ) = जो-जो निरूपण करती हैं  ( तत् महत् ) = उस बड़े  ( ब्राह्मणम् ) = ब्रह्म को  ( आहुः ) = निरूपण करती हैं ।
     

    भावार्थ -

    भावार्थ = परमात्मा सबका कारण और अनादि है। उससे पहले कोई भी न था। उस दयामय परमात्मा ने हम पर कृपा करके यथार्थ अर्थ के निरूपण करनेवाले-वेद प्रकट किये । वह वैदिक ज्ञान जहाँ-जहाँ प्रचार को प्राप्त हुआ उस-उस देश के पुरुषों को आस्तिक धार्मिक और ज्ञानी बना दिया। उन ज्ञानी पुरुषों ने ही यथाशक्ति वैदिक सभ्यता फैलाई । जिस सभ्यता का कुछ-कुछ प्रतिभास यूरोप, अमरीका, भारत आदि देशों में दिखाई देता है। यदि उन देशों में वैदिक ज्ञान पूरा-पूरा फैल जाए तो वे सब मनुष्य पूरे धार्मिक, आस्तिक और ज्ञानी बनकर अपने देशों का उद्धार कर सकें ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top