Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 2 > सूक्त 36

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 2/ सूक्त 36/ मन्त्र 8
    सूक्त - पतिवेदनः देवता - ओषधिः छन्दः - निचृत्पुरउष्णिक् सूक्तम् - पतिवेदन सूक्त

    आ ते॑ नयतु सवि॒ता न॑यतु॒ पति॒र्यः प्र॑तिका॒म्यः॑। त्वम॑स्यै धेहि ओषधे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ते॒ । न॒य॒तु॒ । स॒वि॒ता । न॒य॒तु॒ । पति॑: । य: । प्र॒ति॒ऽका॒म्य᳡: । त्वम् । अ॒स्यै॒ । धे॒हि॒ । ओ॒ष॒धे॒ ॥३६.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ ते नयतु सविता नयतु पतिर्यः प्रतिकाम्यः। त्वमस्यै धेहि ओषधे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । ते । नयतु । सविता । नयतु । पति: । य: । प्रतिऽकाम्य: । त्वम् । अस्यै । धेहि । ओषधे ॥३६.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 36; मन्त्र » 8

    भावार्थ -
    (सविता) सब का प्रेरक, उत्पादक परमात्मा (ते) तेरे लिये हे कन्ये ! पति को (आनयतु) प्राप्त करावे । और (यः) जो (प्रतिकाम्यः) इसके प्रेम के एवज में इसको प्रेम से चाहता है वह (पतिः) पति इसको (नयतु) अपनी पत्नी बनाकर ले जावे। हे (ओषधे) पुष्टिकारक ओषधे ! वा कामना को धारण करने वाले पते ! (त्वम्) तू (अस्यै) इस कन्या के गर्भ में उत्तम, पुष्ट, स्थापित वीर्य को (घेहि) धारण और पोषण कर ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - पतिवेदन ऋषिः। अग्नीषोमौ मन्त्रोक्ता सोमसूर्येन्द्रभगधनपतिहिरण्यौषधयश्च देवताः। १ भुरिग्। २, ५-७ अनुष्टुभः। ३, ४ त्रिष्टुभौ। ८ निचृत् पुरोष्णिक् । अष्टर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top