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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 2

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 2/ मन्त्र 1
    सूक्त - वेनः देवता - आत्मा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - आत्मविद्या सूक्त

    य आ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य॒ विश्व॑ उ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒ यस्य॑ दे॒वाः। योऽस्येशे॑ द्वि॒पदो॒ यश्चतु॑ष्पदः॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: आ॒त्म॒ऽदा: । ब॒ल॒ऽदा: । यस्य॑ । विश्वे॑ । उ॒प॒ऽआस॑ते । प्र॒ऽशिष॑म् । यस्य॑ । दे॒वा: । य: । अ॒स्य । ईशे॑ । द्वि॒ऽपद॑: । य: । चतु॑:ऽपद: । कस्मै॑ । दे॒वाय॑ । ह॒विषा॑ । वि॒धे॒म॒ ॥२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवाः। योऽस्येशे द्विपदो यश्चतुष्पदः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: आत्मऽदा: । बलऽदा: । यस्य । विश्वे । उपऽआसते । प्रऽशिषम् । यस्य । देवा: । य: । अस्य । ईशे । द्विऽपद: । य: । चतु:ऽपद: । कस्मै । देवाय । हविषा । विधेम ॥२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    उसी प्रभु का वर्णन करते हैं (यः) जो (आत्मदा) सबः शरीरों में जीवों को प्राण देने वाला, (बलदा) और बल का देने वाला है, (यस्य) जिसके (प्रशिषम्) सर्वोच्च शासन, आज्ञा की (विश्व) समस्त लोक (उपासते) उपासना करते हैं और जिसके शासन को (यः), (देवाः) देव; प्रकाशमान सूर्य आदि ३३ देव भी पालन करते हैं, जो (अस्य द्विपदः) इस दो चरण वाले मनुष्य संसार, और (यः) जो, इस (चतुष्पदः) पशु-संसार का भी (ईशे) प्रभु है, उस (कस्मै) सुख-स्वरूप प्रजापति, (देवाय) परम देव के लिये हम (हविषा) नित्य की प्रार्थना-उपासना से (विधेम) पूजा अर्चना करें। अथवा (कस्मै) सब के प्रश्न द्वारा ज्ञान करने योग्य, ‘सं-प्रश्न’ स्वरूप परमेश्वर की हम:- उपासना करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वेन ऋषिः। आत्मा देवता। १-२ त्रिष्टुभः।१ पुरोऽनुष्टुप्। ८ उपरिष्टाज्ज्योतिः । अष्टर्चं सूक्तम्॥

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