Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 22

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 22/ मन्त्र 1
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - तक्मनाशनः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - तक्मनाशन सूक्त

    अ॒ग्निस्त॒क्मान॒मप॑ बाधतामि॒तः सोमो॒ ग्रावा॒ वरु॑णः पू॒तद॑क्षाः। वेदि॑र्ब॒र्हिः स॒मिधः॒ शोशु॑चाना॒ अप॒ द्वेषां॑स्यमु॒या भ॑वन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नि: । त॒क्मान॑म् । अप॑ । बा॒ध॒ता॒म् । इ॒त: । सोम॑: । ग्रावा॑ । वरु॑ण: । पू॒तऽद॑क्षा । वेदि॑: । ब॒र्हि: । स॒म्ऽइध॑: । शोशु॑चाना: । अप॑ । द्वेषां॑सि । अ॒मु॒या॒ । भ॒व॒न्तु॒ ॥२२.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निस्तक्मानमप बाधतामितः सोमो ग्रावा वरुणः पूतदक्षाः। वेदिर्बर्हिः समिधः शोशुचाना अप द्वेषांस्यमुया भवन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नि: । तक्मानम् । अप । बाधताम् । इत: । सोम: । ग्रावा । वरुण: । पूतऽदक्षा । वेदि: । बर्हि: । सम्ऽइध: । शोशुचाना: । अप । द्वेषांसि । अमुया । भवन्तु ॥२२.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 22; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (अग्नि:) अग्नि, (सोमः) सोम, (ग्रावा) सोम को कूटने वाले प्रस्तर, (वरुणः) वरुण ये सब (पूत-दक्षाः) पवित्र बल वाले हों ओर (वेदिः) यज्ञमय वेदि, (बर्हिः) धान्य या कुशा, (समिधः) काष्ठ, लकड़ियें (शोशुचानाः) देदीप्यमान होकर (तक्मा नम्) ज्वर को (अप बाधताम्) दूर करें, आने से रोकें और हमारे (द्वेषांसि) द्वेष के पात्र जिन को हम अच्छा नहीं समझते वे (अप भवन्तु) दूर रहें। अग्नि = उष्ण गुण के पदार्थ, सोमः=शीत गुण के पदार्थ, ग्रावा = वह पदार्थ जो इन दोनों पदार्थों को अपने में घोल लें, वरुणः = जलमय पदार्थ वेदिः=शरीर स्वतः, बर्हिः = औषधियां और समिधः = काष्ठ इन सब तेजस्वी पदार्थों के समुचित प्रयोग से ज्वर का विनाश करना चाहिये।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भृग्वङ्गिरसो ऋषयः। तक्मनाशनो देवता। १, २ त्रिष्टुभौ। (१ भुरिक्) ५ विराट् पथ्याबृहती। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top