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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 27

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 27/ मन्त्र 7
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - इळा, सरस्वती, भारती छन्दः - द्विपदा साम्नीबृहती सूक्तम् - अग्नि सूक्त

    द्वारो॑ दे॒वीरन्व॑स्य॒ विश्वे॑ व्र॒तं र॑क्षन्ति वि॒श्वहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्वार॑: । दे॒वी: । अनु॑ । अ॒स्य॒ । विश्वे॑ । व्र॒तम् । र॒क्ष॒न्ति॒ । वि॒श्वहा॑ ॥२७.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्वारो देवीरन्वस्य विश्वे व्रतं रक्षन्ति विश्वहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्वार: । देवी: । अनु । अस्य । विश्वे । व्रतम् । रक्षन्ति । विश्वहा ॥२७.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 27; मन्त्र » 7

    भावार्थ -
    (देवीः) दिव्यगुणसम्पन्न, ज्ञानमय (द्वारः) द्वार-रूप इन्द्रियां (अनु अस्य) इस आत्मा की शक्ति के अनुकूल व्यापार करते हैं। और (विश्वे) समस्त लोक और समस्त विद्वान् भी (अस्य) इसके ही (व्रतं) उपदिष्ट कर्त्तव्यों का (विश्वहा) नाना प्रकार से (रक्षन्ति) पालन करते हैं। समानार्थ ऋचा देखो ऋ० १। १४२। ६॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। अग्निर्देवता। १ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। २ द्विपदा साम्नी भुरिगनुष्टुप्। ३ द्विपदा आर्ची बृहती। ४ द्विपदा साम्नी भुरिक् बृहती। ५ द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्। ६ द्विपदा विराड् नाम गायत्री। ७ द्विपदा साम्नी बृहती। २-७ एकावसानाः। ८ संस्तार पंक्तिः। ९ षट्पदा अनुष्टुब्गर्भा परातिजगती। १०-१२ परोष्णिहः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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