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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 27

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 27/ मन्त्र 4
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - इळा, सरस्वती, भारती छन्दः - द्विपदा साम्नी भुरिग्बृहती सूक्तम् - अग्नि सूक्त

    अच्छा॒यमे॑ति॒ शव॑सा घृ॒ता चि॒दीडा॑नो॒ वह्नि॒र्नम॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अच्छ॑ । अ॒यम् । ए॒ति॒। शव॑सा । घृ॒ता । चि॒त् । ईडा॑न: । वह्नि॑ । नम॑सा ॥२७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अच्छायमेति शवसा घृता चिदीडानो वह्निर्नमसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अच्छ । अयम् । एति। शवसा । घृता । चित् । ईडान: । वह्नि । नमसा ॥२७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 27; मन्त्र » 4

    भावार्थ -
    (शवसा) ज्ञान, बल से (नमसा) और भक्ति से (ईडानः) स्तुति करता हुआ (वह्निः) यज्ञ का निर्वाहक (अयम्) यह अध्वर्यु अथवा ज्ञान-यज्ञ का सम्पादक योगी (अच्छा) भली प्रकार उस (घृता चित्) प्रकाशमय प्रभु को (एति) प्राप्त होता है। समानार्थ ऋचा देखो ऋ० १। १४२। ४ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। अग्निर्देवता। १ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप्। २ द्विपदा साम्नी भुरिगनुष्टुप्। ३ द्विपदा आर्ची बृहती। ४ द्विपदा साम्नी भुरिक् बृहती। ५ द्विपदा साम्नी त्रिष्टुप्। ६ द्विपदा विराड् नाम गायत्री। ७ द्विपदा साम्नी बृहती। २-७ एकावसानाः। ८ संस्तार पंक्तिः। ९ षट्पदा अनुष्टुब्गर्भा परातिजगती। १०-१२ परोष्णिहः। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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