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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 41

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 41/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - चन्द्रमाः छन्दः - भुरिगनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायुप्राप्ति सूक्त

    मन॑से॒ चेत॑से धि॒य आकू॑तय उ॒त चित्त॑ये। म॒त्यै श्रु॒ताय॒ चक्ष॑से वि॒धेम॑ ह॒विषा॑ व॒यम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मन॑से । चेत॑से । धि॒ये । आऽकू॑तये । उ॒त । चित्त॑ये । म॒त्यै । श्रु॒ताय॑ । चक्ष॑से । वि॒धेम॑ । ह॒विषा॑ । व॒यम् ॥४१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मनसे चेतसे धिय आकूतय उत चित्तये। मत्यै श्रुताय चक्षसे विधेम हविषा वयम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मनसे । चेतसे । धिये । आऽकूतये । उत । चित्तये । मत्यै । श्रुताय । चक्षसे । विधेम । हविषा । वयम् ॥४१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 41; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (मनसे) मनः-शक्ति, (चेतसे) सम्यग् ज्ञान, (धिये) धारणा शक्ति, (आकूतये) प्रतिभा (उत्) और (चित्तये) चेतना शक्ति, (मत्यै) तत्व विचार करने वाली मननशक्ति, (श्रुताय) गुरुउपदेश द्वारा प्राप्य वेद ज्ञान या श्रवण शक्ति और (चक्षसे) भीतरी चक्षु, आत्मा की दर्शनशक्ति, इन सब शक्तियों के प्राप्त करने के लिए (वयम्) हम (हविषा) अन्न आदि पौष्टिक सात्विक पदार्थों द्वारा या आत्मशक्ति या मस्तिष्क शक्ति या मन और वाणी की शक्ति से प्राप्त करने की (विधेम) सदा साधना किया करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। बहवः उत चन्द्रमा देवता। १ भुरिगनुष्टुप्, २ अनुष्टुप्, ३ त्रिष्टुप्, तृचं सूक्तम्॥

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