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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 93

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 93/ मन्त्र 3
    सूक्त - शन्ताति देवता - विश्वे देवाः, मरुद्गणः, अग्नीसोमौ, वरुणः, वातपर्जन्यः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - स्वस्त्ययन सूक्त

    त्राय॑ध्वं नो अ॒घवि॑षाभ्यो व॒धाद्विश्वे॑ देवा मरुतो विश्ववेदसः। अ॒ग्नीषोमा॒ वरु॑णः पू॒तद॑क्षा वातापर्ज॒न्ययोः॑ सुम॒तौ स्या॑म ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्राय॑ध्वम् । न॒: । अ॒घऽवि॑षाभ्य: । व॒धात् । विश्वे॑ । दे॒वा॒: । म॒रु॒त॒: । वि॒श्व॒ऽवे॒द॒स॒: । अ॒ग्नीषोमा॑ । वरु॑ण: । पू॒तऽद॑क्षा: । वा॒ता॒प॒र्ज॒न्ययो॑: । सु॒ऽम॒तौ । स्या॒म॒ ॥९३.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रायध्वं नो अघविषाभ्यो वधाद्विश्वे देवा मरुतो विश्ववेदसः। अग्नीषोमा वरुणः पूतदक्षा वातापर्जन्ययोः सुमतौ स्याम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रायध्वम् । न: । अघऽविषाभ्य: । वधात् । विश्वे । देवा: । मरुत: । विश्वऽवेदस: । अग्नीषोमा । वरुण: । पूतऽदक्षा: । वातापर्जन्ययो: । सुऽमतौ । स्याम ॥९३.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 93; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    (विश्वे देवाः) सब शक्तिशाली विद्वान् लोग और (विश्ववेदसः) सब कुछ जानने वाले, (मरुतः) शीघ्रगामी सेना नायक लोग (नः) हमें (अघ-विषाभ्यः) पाप से पूर्ण हत्याकारी सेनाओं से और (वधात्) हत्याकारी शस्त्रों से (त्रायध्वम्) बचावें। (अग्नी-षोमौ) अग्नि = सेनानायक और सोम = प्रेरक राजा और (वरुणः) सर्वश्रेष्ठ महाराज हमें पूर्वोक्त पापियों और हत्याकारों से बचावें। और हम (वातापर्जन्ययोः) वात = तीव्र वायु के समान शत्रु को उड़ा देनेवाले अथवा राष्ट्र के प्राणस्वरूप और राष्ट्र पर सुखों की वर्षा करने और उनको पराजित करने वाले सेनापति और राजा के (सुमतौ) शुभ संकल्प में हम (स्याम) सदा रहें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - शंतातिर्ऋषिः। रुद्रो देवता। १-३ त्रिष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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