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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 38/ मन्त्र 10
    ऋषिः - कण्वो घौरः देवता - मरूतः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अध॑ स्व॒नान्म॒रुतां॒ विश्व॒मा सद्म॒ पार्थि॑वम् । अरे॑जन्त॒ प्र मानु॑षाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑ । स्व॒नात् । म॒रुताम् । विश्व॑म् । आ । सद्म॑ । पार्थि॑वम् । अरे॑जन्त । प्र । मानु॑षाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अध स्वनान्मरुतां विश्वमा सद्म पार्थिवम् । अरेजन्त प्र मानुषाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अध । स्वनात् । मरुताम् । विश्वम् । आ । सद्म । पार्थिवम् । अरेजन्त । प्र । मानुषाः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 38; मन्त्र » 10
    अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 5

    भावार्थ -
    (अध) और (मरुताम्) तीव्र वायुओं और उनके समान प्रचण्ड वेग से जाने वाले वीर सैनिकों के (स्वनात्) घोष से (विश्वम्) समस्त (पार्थिवम्) पृथिवी लोक और समस्त नरपति मण्डल (सद्म) मट्टी के बने घर के समान (आ अरेजत्) काँप जाता है। और (मानुषाः) साधारण मनुष्य तो (प्र अरेजत्) बहुत ही अधिक कांप जाते हैं, डर जाते हैं। इति पोडशो वर्गः ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १– १५ कण्वो घौर ऋषिः । मरुतो देवताः ।। छन्द:—१, ८, ११, १३, १४, १५, ४ गायत्री २, ६, ७, ९, १० निचृद्गायत्री । ३ पादनिचृद्गायत्री । ५ १२ पिपीलिकामध्या निचृत् । १४ यवमध्या विराड् गायत्री । पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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