Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 38 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 38/ मन्त्र 10
    ऋषिः - कण्वो घौरः देवता - मरूतः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अध॑ स्व॒नान्म॒रुतां॒ विश्व॒मा सद्म॒ पार्थि॑वम् । अरे॑जन्त॒ प्र मानु॑षाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑ । स्व॒नात् । म॒रुताम् । विश्व॑म् । आ । सद्म॑ । पार्थि॑वम् । अरे॑जन्त । प्र । मानु॑षाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अध स्वनान्मरुतां विश्वमा सद्म पार्थिवम् । अरेजन्त प्र मानुषाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अध । स्वनात् । मरुताम् । विश्वम् । आ । सद्म । पार्थिवम् । अरेजन्त । प्र । मानुषाः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 38; मन्त्र » 10
    अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    (अध) आनन्तर्ये। वर्णव्यत्ययेन थस्य धः। (स्वनात्) उत्पन्नाच्छब्दात् (मरुताम्) वायूनां विद्युतश्च सकाशात् (विश्वम्) सर्वम् (आ) समन्तात् (सद्म) सीदन्ति यस्मिन् गृहे तत्। सद्मेति गृहनामसु पठितम्। निघं० ३।४। (पार्थिवम्) पृथिव्यां विदितं वस्तु (अरेजन्त) कम्पन्ते रेजृकंपन अस्माद्धातोर्लडर्थे लङ्। (प्र) प्रगतार्थे (मानुषाः) मानवाः ॥१०॥

    अन्वयः

    पुनरेतेषां योगेन किं भवतीत्युपदिश्यते।

    पदार्थः

    हे मानुषा यूयं येषां मरुतां स्वनादध विश्वं पार्थिवं सद्म कम्पते प्राणिनः प्रारेजन्त प्रकम्पन्ते चलन्तीति तान् विजानीत ॥१०॥

    भावार्थः

    हे ज्योतिर्विदो विपश्चितो भवन्तो मरुतां योगेनैव सर्वं मर्तिमद्द्रव्यं चेष्टते प्राणिनो भयंकराद्विद्युच्छब्दाद्भीत्वा कम्पते पृथिव्यादिकं प्रतिक्षणं भ्रमतीति निश्चिन्वन्तु ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर इन पवनों के योग से क्या होता है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

    पदार्थ

    हे (मानुषाः) मननशील मनुष्यो ! तुम जिन (मरुताम्) पवनों के (स्वनात्) उत्पन्न शब्द के होने से (अध) अनन्तर (विश्वम्) सब (पार्थिवम्) पृथिवी में विदित वस्तुमात्र का (सद्म) स्थान कंपता और प्राणिमात्र (अरेजन्त) अच्छे प्रकार कंपित होते हैं इस प्रकार जानो ॥१०॥

    भावार्थ

    हे ज्योतिष्य शास्त्र के विद्वान लोगो ! आप पवनों के योग ही के सब मूर्त्तिमान् द्रव्य चेष्टा को प्राप्त होते प्राणी लोग बिजुली के भयंकर शब्द में भय को प्राप्त होकर कंपित होते और भूगोल आदि प्रतिक्षण भ्रमण किया करते हैं ऐसा निश्चित समझों ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    फिर इन पवनों के योग से क्या होता है, इस विषय का उपदेश इस मंत्र में किया है।

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    हे मानुषा यूयं येषां मरुतां स्वनात् अध विश्वं पार्थिवं सद्म कम्पते प्राणिनः प्र अरेजन्त प्र कम्पन्ते चलन्तीति तान् विजानीत ॥१०॥

    पदार्थ

    हे (मानुषाः) मानवाः=मनुष्यों!  (यूयम्)=तुम सब,  (येषाम्)=जिन, (मरुताम्) वायूनां विद्युतश्च सकाशात्=वायु और विद्युत् के निकट से, (स्वनात्) उत्पन्नाच्छब्दात्=उत्पन्न शब्दों के द्वारा, (अध) आनन्तर्ये=अंतराल की अनुपस्थिति, (विश्वम्) सर्वम्=समस्त, (पार्थिवम्) पृथिव्यां विदितं वस्तु=पृथिवी की जानी हुई वस्तुएँ, (सद्म) सीदन्ति यस्मिन् गृहे तत्=उस घर में रहती हैं, (कम्पते)=कम्पन करता है,  (प्राणिनः)=प्राणी, (प्र) प्रगतार्थे=अलग-अलग, (अरेजन्त) कम्पन्ते=हैं।  (तान्)=उनको,  (चलन्तीति)=कम्पन करते हैं, ऐसे, (विजानीत)=विशेष रूप से जानो॥१०॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    हे ज्योतिष्य शास्त्र के विद्वान लोगो ! आप पवनों के योग ही के सब मूर्त्तिमान् द्रव्य चेष्टा को प्राप्त होते प्राणी लोग बिजुली के भयंकर शब्द में भय को प्राप्त होकर कंपित होते और भूगोल आदि प्रतिक्षण भ्रमण किया करते हैं ऐसा निश्चित समझों ॥१०॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    हे (मानुषाः) मनुष्यों!  (यूयम्) तुम सब  (येषाम्) जिन (मरुताम्) वायु और विद्युत् के निकट से (स्वनात्) उत्पन्न शब्दों के द्वारा (अध) अंतराल की अनुपस्थिति में (विश्वम्) समस्त (पार्थिवम्) पृथिवी की जानी हुई वस्तुएँ (सद्म) जिस घर में रहती हैं,  [वह स्थान] (कम्पते) कम्पन करता है [और]  (प्राणिनः) प्राणी (प्र) अलग-अलग (अरेजन्त) कम्पन्ते हैं। (तान्) उनको [जो]  (चलन्तीति) कम्पन करते हैं, ऐसे ही, (विजानीत) विशेष रूप से जानो॥१०॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (अध) आनन्तर्ये। वर्णव्यत्ययेन थस्य धः। (स्वनात्) उत्पन्नाच्छब्दात् (मरुताम्) वायूनां विद्युतश्च सकाशात् (विश्वम्) सर्वम् (आ) समन्तात् (सद्म) सीदन्ति यस्मिन् गृहे तत्। सद्मेति गृहनामसु पठितम्। निघं० ३।४। (पार्थिवम्) पृथिव्यां विदितं वस्तु (अरेजन्त) कम्पन्ते रेजृकंपन अस्माद्धातोर्लडर्थे लङ्। (प्र) प्रगतार्थे (मानुषाः) मानवाः ॥१०॥ 
    विषयः- पुनरेतेषां योगेन किं भवतीत्युपदिश्यते।

    अन्वयः- हे मानुषा यूयं येषां मरुतां स्वनादध विश्वं पार्थिवं सद्म कम्पते प्राणिनः प्रारेजन्त प्रकम्पन्ते चलन्तीति तान् विजानीत ॥१०॥

    भावार्थः(महर्षिकृतः)- हे ज्योतिर्विदो विपश्चितो भवन्तो मरुतां योगेनैव सर्वं मर्तिमद्द्रव्यं चेष्टते प्राणिनो भयंकराद्विद्युच्छब्दाद्भीत्वा कम्पते पृथिव्यादिकं प्रतिक्षणं भ्रमतीति निश्चिन्वन्तु ॥१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    दीप्ति ही दीप्ति

    पदार्थ

    १. (अध) - गतमन्त्र के अनुसार इन भौतिक वस्तुओं की चमक के न रहने पर अब (मरुताम्) - इन प्राणों के (स्वनात्) - शब्द से, अर्थात् प्राणसाधना होने पर, चित्तवृत्तियों की एकाग्रता के द्वारा प्रभु की अन्तः प्रेरणा सुनाई पड़ती है । इस अन्तः प्रेरणा के शब्द से (विश्वम्) - यह सारा (पार्थिवं सद्म) - पार्थिव घर, अर्थात् शरीर अरेजत - सर्वथा चमक उठता है और इस प्रकार (मानुषाः) - ये विचारशील मनुष्य (प्र अरेजन्त) - [एज् to shine] खूब ही चमकने लगते हैं । 
    २. प्राणसाधना से अन्तः प्रेरणा सुनाई पड़ती है । इस प्रेरणा के सुनाई पड़ने पर हमारा सारा शरीर निर्मल हो जाता है और मनुष्य चमक उठता है । 
     

    भावार्थ

    भावार्थ - प्राणसाधना हमें निर्मल और दीप्त बना देती है ।  
     

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मरुद्-गणों, वीरों, विद्वानों वैश्यों और प्राणों का वर्णन ।

    भावार्थ

    (अध) और (मरुताम्) तीव्र वायुओं और उनके समान प्रचण्ड वेग से जाने वाले वीर सैनिकों के (स्वनात्) घोष से (विश्वम्) समस्त (पार्थिवम्) पृथिवी लोक और समस्त नरपति मण्डल (सद्म) मट्टी के बने घर के समान (आ अरेजत्) काँप जाता है। और (मानुषाः) साधारण मनुष्य तो (प्र अरेजत्) बहुत ही अधिक कांप जाते हैं, डर जाते हैं। इति पोडशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १– १५ कण्वो घौर ऋषिः । मरुतो देवताः ।। छन्द:—१, ८, ११, १३, १४, १५, ४ गायत्री २, ६, ७, ९, १० निचृद्गायत्री । ३ पादनिचृद्गायत्री । ५ १२ पिपीलिकामध्या निचृत् । १४ यवमध्या विराड् गायत्री । पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे ज्योतिष्यशास्त्रज्ञांनो! वायूच्या योगाने सर्व मूर्तिमान द्रव्य हालचाल करतात. प्राणी विद्युतच्या गर्जनेने भयभीत होतात व भूगोल इत्यादी प्रतिक्षण भ्रमण करतात, असे निश्चित समजा. ॥ १० ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    And then by the roar of lightning winds the whole earth and the entire human world shake and tremble like a house built of clay.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject of the mantra

    Then what happens with the combination of these airs, this topic has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (mānuṣāḥ)=humans! (yūyam)=all of you, (yeṣām)=in which, (marutām)=from close to air and, electricity (svanāt)=by created words, (adha)=in the absence of gap, (viśvam)=all, (pārthivam)=known objects of the earth, (sadma)=are placed in which house, [vaha sthāna]=that place, (kampate)= tremble, [aura]=and, (prāṇinaḥ)=living beings, (pra)=separately, (arejanta)=tremble, (tān)=to them, [jo]=who, (calantīti)=tremble, in the same way, (vijānīta)=know especially.

    English Translation (K.K.V.)

    O humans! All of you, by the words generated from the proximity of air and electricity, in the absence of space, the house where all the known things of the earth are placed, the place trembles and the creatures tremble separately. Those who tremble, just like that, especially know them.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    O learned people of astrology! It is only because of the combination of the airs that all the living beings tremble with fear at the frightful sound of lightning and that the worlds etc. travel around every moment, understand it for sure.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What happens with the Marut's association is taught in the tenth Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men, you should know well that at the roaring of the Maruts (winds) every dwelling or seat of the earth shakes and men also tremble.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (स्वनात् ) उत्पन्नाच्छब्दात् = From the sound स्वन-शब्दे । ( सझ) सोदन्ति यस्मिन् गृहे तत् । सझेति गृहनामसु पठितम् ( निघ० ३.४) (अरेजन्त) कम्पन्ते । रेजृ-कम्पने प्रस्माद् धातोर्लंडर्थे लड् =Tr mbl

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O knowers of astronomy, you should know it for certain, that all movement of things and beings is on account of the association of the Maruts (winds ). Living beings tremble out of fear from the fierce stumbling on the lightning and the earth rotates every moment.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top