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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 38/ मन्त्र 11
    ऋषिः - कण्वो घौरः देवता - मरूतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    मरु॑तो वीळुपा॒णिभि॑श्चि॒त्रा रोध॑स्वती॒रनु॑ । या॒तेमखि॑द्रयामभिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मरु॑तः । वी॒ळु॒पा॒णिऽभिः॑ । चि॒त्राः । रोध॑स्वतीः । अनु॑ । या॒त । ई॒म् । अखि॑द्रयामऽभिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मरुतो वीळुपाणिभिश्चित्रा रोधस्वतीरनु । यातेमखिद्रयामभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मरुतः । वीळुपाणिभिः । चित्राः । रोधस्वतीः । अनु । यात । ईम् । अखिद्रयामभिः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 38; मन्त्र » 11
    अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 17; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (मरुतः) वायुगण जिस प्रकार (अखिद्रयामभिः) अविच्छिन्न, अटूट वेगों से (चित्राः) नाना प्रकार की (रोधस्वतीः) नदियों की ओर को बहते हैं उसी प्रकार हे (मरुतः) प्रचण्ड वेगवाले वीर सैनिको! आप लोग (वीळुपाणिभिः) दृढ़, बलयुक्त हाथों से (चित्राः) अद्भुत, या चिन कर बनाई गई, या समृद्ध (रोधस्वतीः अनु) चारों तरफ से घेरने वाले परकोटों से घिरी शत्रु की पुरियों को लक्ष्य कर (अखिद्रयामभिः) अनथक चालों से (यात, ईम) बढ़ते चले जाओ। प्राणगण के पक्ष में—हे प्राणगण या योगीजनो! तुम (वीळुपाणिभिः) दृढ़ व्यवहार वाले और (अखिद्रया मभिः) अखिन्न, निरन्तर होने वाली चेष्टाओं से (चित्राः) चेतना देने वाली (रोधस्वतीः अनु) नाड़ियों के प्रति (यात ईम) गति करो। उन पर वश करो।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १– १५ कण्वो घौर ऋषिः । मरुतो देवताः ।। छन्द:—१, ८, ११, १३, १४, १५, ४ गायत्री २, ६, ७, ९, १० निचृद्गायत्री । ३ पादनिचृद्गायत्री । ५ १२ पिपीलिकामध्या निचृत् । १४ यवमध्या विराड् गायत्री । पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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