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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 72 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 72/ मन्त्र 8
    ऋषिः - बृहस्पतिर्बृहस्पतिर्वा लौक्य अदितिर्वा दाक्षायणी देवता - देवाः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    अ॒ष्टौ पु॒त्रासो॒ अदि॑ते॒र्ये जा॒तास्त॒न्व१॒॑स्परि॑ । दे॒वाँ उप॒ प्रैत्स॒प्तभि॒: परा॑ मार्ता॒ण्डमा॑स्यत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ष्टौ । पु॒त्रासः॑ । अदि॑तेः । ये । जा॒ताः । त॒न्वः॑ । परि॑ । दे॒वान् । उप॑ । प्र । ऐ॒त् । स॒प्तऽभिः॑ । परा॑ । मा॒र्ता॒ण्डम् । आ॒स्य॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अष्टौ पुत्रासो अदितेर्ये जातास्तन्व१स्परि । देवाँ उप प्रैत्सप्तभि: परा मार्ताण्डमास्यत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अष्टौ । पुत्रासः । अदितेः । ये । जाताः । तन्वः । परि । देवान् । उप । प्र । ऐत् । सप्तऽभिः । परा । मार्ताण्डम् । आस्यत् ॥ १०.७२.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 72; मन्त्र » 8
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 2; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    (अदितेः तन्वः परि जाताः पुत्रासः अष्टौ) माता के शरीर से जिस प्रकार आठ पुत्र उत्पन्न हों उसी प्रकार व्यापक अखण्ड प्रकृति से भी (अष्टौ पुत्राः) आठ पुत्र आठ तत्त्व जो बहुत से लोकों की रक्षा करते हैं उत्पन्न हुए, वह प्रकृति महत्, अहंकार, पञ्च तन्मात्रा अर्थात् सूक्ष्म भूत इन्द्रिय गण (सप्तभिः देवान् उप प्र एैत्) देवों, समस्त तेजोमय सातों लोकों सहित प्राप्त हुई। और इन्द्रियगण वा देह रूप जो उस प्रकृति का विकार था उसे (मार्ताण्डम्) मृत्-स्थूल प्रकृति के बने अण्ड अर्थात् प्राणधारक पिंड को (परा आस्यत्) दूर २ तक समस्त लोकों में उत्पन्न किया। (२) इसी प्रकार अदिति के आठ पुत्र मित्र, वरुण, धाता, अर्यमा, अंश, भग, विवस्वान् और आदित्य हैं। इनमें आठवां आदित्य मार्त्तण्ड सूर्य है उसको (परा आस्यत्) दूर ऊपर फेंका, जो उदित होता है। (३) शरीर रूप अदिति के आठ पुत्र आठ प्राण रूप से उत्पन्न होते हैं, सात तो शिर के सात छिद्र इन्द्रियों को प्राप्त हुए, आठवां अयास्य प्राण, इस मृत्-अण्ड, स्थूल पिंड को संचालित करता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - बृहस्पतिरांगिरसो बृहस्पतिर्वा लौक्य अदितिर्वा दाक्षायणी ऋषिः। देवा देवता ॥ छन्दः — १, ४, ६ अनुष्टुप्। २ पादनिचृदुनुष्टुप्। ३, ५, ७ निचदनुष्टुप्। ८, ६ विराड्नुष्टुप्॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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