Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 25 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 25/ मन्त्र 5
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अग्ने॑ अ॒पां समि॑ध्यसे दुरो॒णे नित्यः॑ सूनो सहसो जातवेदः। स॒धस्था॑नि म॒हय॑मान ऊ॒ती॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । अ॒पाम् । सम् । इ॒ध्य॒से॒ । दु॒रो॒णे । नित्यः॑ । सू॒नो॒ इति॑ । स॒ह॒सः॒ । जा॒त॒ऽवे॒दः॒ । स॒धऽस्था॑नि । म॒हय॑मानः । ऊ॒ती ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने अपां समिध्यसे दुरोणे नित्यः सूनो सहसो जातवेदः। सधस्थानि महयमान ऊती॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। अपाम्। सम्। इध्यसे। दुरोणे। नित्यः। सूनो इति। सहसः। जातऽवेदः। सधऽस्थानि। महयमानः। ऊती॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 25; मन्त्र » 5
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 5

    भावार्थ -
    हे (अग्ने) ज्ञानवन् ! हे तेजस्विन् ! हे (सहसः सूनो) बलवान् पुरुष के पुत्र के समान ! एवं बल के उत्पादक, सैन्य के प्रेरक ! नेतः ! हे (जातवेदः) प्रज्ञान और ऐश्वर्य के स्वामिन् ! (अपां दुरोणे) तू जलों के बीच सूर्य या विद्युत् के समान (अपां दुरोणे) आप्त प्रजाजनों के गृह वा राष्ट्र के बीच में (नित्यः) सदा वर्त्तमान रहकर भी (सधस्थानि) एकत्र होकर रहने योग्य गृहों और लोकों को अपनी (ऊती) रक्षा और ज्ञान से (महयमानः) अलंकृत करता हुआ (समिध्यसे) अच्छी प्रकार प्रकाशित होता है। सूर्य, विद्युत् दोनों पृथिवी के स्थानों को (ऊती) अन्न से समृद्ध करते हैं। विद्वान् ज्ञान से, वीर पुरुष रक्षा से। (२) अध्यात्म में—(अपां दुरोणे) प्राणों के गृह इस देह में यह (नित्यः) अविनाशी आत्मा नाना देह के स्थानों को, केन्द्रों को विशेष रूप से अधिष्ठित कर विराजता है इसी प्रकार नित्य परमेश्वर प्रकृति के परमाणुओं वां लोकों के बीच में। इति पञ्चविंशो वर्गः ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः॥ १, २, ३, ४ अग्निः। ५ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः- ९, निचृद्नुष्टुप्। २ अनुष्टुप्। ३, ४, ५ भुरिक् त्रिष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top