ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 57/ मन्त्र 2
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्रापूषणौ
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
सोम॑म॒न्य उपा॑सद॒त्पात॑वे च॒म्वोः॑ सु॒तम्। क॒र॒म्भम॒न्य इ॑च्छति ॥२॥
स्वर सहित पद पाठसोम॑म् । अ॒न्यः । उप॑ । अ॒स॒द॒त् । पात॑वे । च॒म्वोः॑ । सु॒तम् । क॒र॒म्भम् । अ॒न्यः । इ॒च्छ॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सोममन्य उपासदत्पातवे चम्वोः सुतम्। करम्भमन्य इच्छति ॥२॥
स्वर रहित पद पाठसोमम्। अन्यः। उप। असदत्। पातवे। चम्वोः। सुतम्। करम्भम्। अन्यः। इच्छति ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 57; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
विषय - व्यापारी वर्ग और कृषक वर्ग और इन्द्र पूषा ।
भावार्थ -
दोनों का पृथक् २ विवरण करते हैं। पूर्वोक्त इन्द्र और पूषा दोनों में से (चम्वो:) राष्ट्र का भोग करने वाले राजा और प्रजावर्ग दोनों में से ( अन्यः ) एक तो ( पातवे ) अपने पालन के लिये ( सुतम् ) अभिषिक्त (सोमम् ) ऐश्वर्यवान्, सर्वप्रेरक राजा को ( उप सदत् ) प्राप्त होता है । और ( अन्यः ) दूसरा राजा ( करम्भम् ) कर ग्रहण कर उससे ही भरण करने योग्य अन्नवत् राष्ट्र को ( इच्छति ) प्राप्त करना चाहता है। ( २ ) ‘इन्द्र’ ऐश्वर्यवान्, व्यापारी वर्ग ( पातवे ) आगे के लिये राष्ट्र का उत्पन्न ऐश्वर्थ प्राप्त करे और (अन्य:) दूसरा ( पूषा ) पृथिवीस्थ शेष प्रजावर्ग भूमि से अन्न उत्पन्न करना चाहता है । एक धन कमावे, और एक अन्न, वे दोनों ही इन्द्र और पूषा हैं। व्यापारी वर्ग ‘इन्द्र’ है, कृषक वर्ग ‘पूषा’ है ।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्र-पूषणौ देवते ॥ छन्दः – १, ६ विराड् गायत्री । २, ३ निचृद्गायत्री । ४, ५ गायत्री ॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥
इस भाष्य को एडिट करें