Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 103 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 103/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मण्डूकाः छन्दः - आर्ष्यनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    सं॒व॒त्स॒रं श॑शया॒ना ब्रा॑ह्म॒णा व्र॑तचा॒रिण॑: । वाचं॑ प॒र्जन्य॑जिन्वितां॒ प्र म॒ण्डूका॑ अवादिषुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒व्ँम्व॒त्स॒रम् । श॒श॒या॒नाः । ब्रा॒ह्म॒णाः । व्र॒त॒ऽचा॒रिणः॑ । वाच॑म् । प॒र्जन्य॑ऽजिन्विताम् । प्र । म॒ण्डूकाः॑ । अ॒वा॒दि॒षुः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    संवत्सरं शशयाना ब्राह्मणा व्रतचारिण: । वाचं पर्जन्यजिन्वितां प्र मण्डूका अवादिषुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सव्ँम्वत्सरम् । शशयानाः । ब्राह्मणाः । व्रतऽचारिणः । वाचम् । पर्जन्यऽजिन्विताम् । प्र । मण्डूकाः । अवादिषुः ॥ ७.१०३.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 103; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 3; मन्त्र » 1

    भावार्थ -

    जिस प्रकार ( संवत्सरं शशयानाः ) एक वर्ष पड़े रहने वाले ( मण्डूकाः ) जलवासी मेंडक ( पर्जन्य-जिन्वितां वाचं प्र अवादिषुः ) मेघ से प्रदान की वाणी को खूब ऊंचे २ बोलते हैं उसी प्रकार ( व्रत-चारिणः ) नियम, व्रत का आचरण करने वाले ( संवत्सरं शशयानाः ) वर्ष भर तीक्ष्ण तप करते हुए (ब्राह्मणाः ) 'ब्रह्म', वेद के जानने वाले, वेदज्ञ, वेदाभ्यासी, विद्वान् जन ( मण्डूका: ) ज्ञान, आनन्द में मग्न होकर ( पर्जन्य-जिन्वितां ) सर्वोत्पादक प्रभु की दी हुई ( वाचं ) वेद वाणी का ( प्र अवादिषुः ) उत्तम रीति से प्रवचन किया करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    वसिष्ठ ऋषिः॥ मण्डूका देवताः॥ छन्दः—१ आर्षी अनुष्टुप् । २, ६, ७, ८, १० आर्षी त्रिष्टुप्। ३, ४ निचृत् त्रिष्टुप्। ५, ९ विराट् त्रिष्टुप् ॥ तृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top