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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 26/ मन्त्र 5
    ऋषिः - इध्मवाहो दाळर्हच्युतः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    तं साना॒वधि॑ जा॒मयो॒ हरिं॑ हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः । ह॒र्य॒तं भूरि॑चक्षसम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । सानौ॑ । अधि॑ । जा॒मयः॑ । हरि॑म् । हि॒न्व॒न्ति॒ । अद्रि॑ऽभिः । ह॒र्य॒तम् । भूरि॑ऽचक्षसम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं सानावधि जामयो हरिं हिन्वन्त्यद्रिभिः । हर्यतं भूरिचक्षसम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । सानौ । अधि । जामयः । हरिम् । हिन्वन्ति । अद्रिऽभिः । हर्यतम् । भूरिऽचक्षसम् ॥ ९.२६.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 26; मन्त्र » 5
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 5

    भावार्थ -
    (सानौ अधि हरिं) उच्च पद पर विराजमान, अन्धकार के नाशक, सूर्य के समान तेजस्वी, स्वप्रकाश (हरिं) उस सर्व-दुःखहारी (सानौ अधि) सर्वोच्च पद पर विराजमान, (हर्यतं) परम कान्तिमान्, (भूरि-चक्षसं) बहुत से लोकों, जीवों के कर्मफलादि के देखने वाले, सर्वद्रष्टा परमेश्वर को (जामयः) उसके बन्धुवत् भक्त जन (अद्रिभिः) मेघवत् आनन्द रसवर्षक धर्ममेघ नामक समाधियों द्वारा (हिन्वन्ति) उस तक पहुंचते और उसकी स्तुति करते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - इध्मवाहो दार्ढच्युत ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३–५ निचृद गायत्री। २, ६ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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