ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 32/ मन्त्र 1
प्र सोमा॑सो मद॒च्युत॒: श्रव॑से नो म॒घोन॑: । सु॒ता वि॒दथे॑ अक्रमुः ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । सोमा॑सः । म॒द॒ऽच्युतः॑ । श्रव॑से । नः॒ । म॒घोनः॑ । सु॒ताः । वि॒दथे॑ । अ॒क्र॒मुः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र सोमासो मदच्युत: श्रवसे नो मघोन: । सुता विदथे अक्रमुः ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । सोमासः । मदऽच्युतः । श्रवसे । नः । मघोनः । सुताः । विदथे । अक्रमुः ॥ ९.३२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 32; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
विषय - पवमान सोम।
भावार्थ -
(सोमासः) वीर्यवान्, ज्ञान का सम्पादन करने वाले, ब्रह्मचारी गण (मद-च्युतः) हर्षप्रद होकर (सुताः) विद्या और व्रत में निःष्णात हो कर (नः मघोनः) हम उत्तम धन वालों के पास (श्रवसे) अन्न धनादि प्राप्त करने के लिये (विदथे) यज्ञों में (प्र अक्रमुः) आदरपूर्वक प्राप्त हों। इसी प्रकार ज्ञान रूप धनों के स्वामी गुरु जनों को शिष्य और राजाओं को वीरवत् ज्ञानोपार्जन और संग्राम के निमित्त प्राप्त हों।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - श्यावाश्व ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः-१, २ निचृद् गायत्री। ३-६ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
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