ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 47/ मन्त्र 5
सि॒षा॒सतू॑ रयी॒णां वाजे॒ष्वर्व॑तामिव । भरे॑षु जि॒ग्युषा॑मसि ॥
स्वर सहित पद पाठसि॒सा॒सतुः॑ । र॒यी॒णाम् । वाजे॑षु । अर्व॑ताम्ऽइव । भरे॑षु । जि॒ग्युषा॑म् । अ॒सि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सिषासतू रयीणां वाजेष्वर्वतामिव । भरेषु जिग्युषामसि ॥
स्वर रहित पद पाठसिसासतुः । रयीणाम् । वाजेषु । अर्वताम्ऽइव । भरेषु । जिग्युषाम् । असि ॥ ९.४७.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 47; मन्त्र » 5
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 5
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 5
विषय - सर्वपोषक राजा शासक, सेवकों को भृति, वेतन आदि का देने वाला हो।
भावार्थ -
(भरेषु) भरण पोषण करने योग्य, अधीन भृत्यों में से (जिग्युषाम्) विजयशील (वाजेषु) संग्रामों में (अर्वताम् इव) घोड़ों के लिये घास के समान जान लड़ा देने वालों के निमित्त तू (रयीणाम् सिषासतुः असि) ऐश्वर्यों, धनों, वेतनों का देने वाला है। इति चतुर्थो वर्गः॥
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कविर्भार्गव ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ३, ४ गायत्री। २ निचृद् गायत्री। ५ विराड् गायत्री॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
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