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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 47/ मन्त्र 5
    ऋषिः - कविभार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    सि॒षा॒सतू॑ रयी॒णां वाजे॒ष्वर्व॑तामिव । भरे॑षु जि॒ग्युषा॑मसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सि॒सा॒सतुः॑ । र॒यी॒णाम् । वाजे॑षु । अर्व॑ताम्ऽइव । भरे॑षु । जि॒ग्युषा॑म् । अ॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सिषासतू रयीणां वाजेष्वर्वतामिव । भरेषु जिग्युषामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सिसासतुः । रयीणाम् । वाजेषु । अर्वताम्ऽइव । भरेषु । जिग्युषाम् । असि ॥ ९.४७.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 47; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (वाजेषु अर्वताम् इव) हे सर्वरक्षक परमात्मन् ! भवान् सर्वशक्तिषु व्यापक इव (भरेषु जिग्युषाम्) रणे जयमिच्छुभ्यः कर्मयोगिभ्यः (रयीणाम् सिषासतुरसि) सम्पूर्णोपयोगि-पदार्थप्रदाता चास्ति ॥५॥ इति सप्तचत्वारिंशत्तमं सूक्तं चतुर्थो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (वाजेषु अर्वताम् इव) हे परमात्मन् ! आप सर्वशक्तियों में व्यापक के समान (भरेषु जिग्युषाम्) संग्राम में जय को चाहनेवाले कर्मयोगियों को (रयीणां सिषासतुरसि) सम्पूर्ण उपयोगी पदार्थों के देनेवाले हैं ॥५॥

    भावार्थ

    जो संग्रामों में कर्मयोगी बनकर विजय की इच्छा करते हैं, परमात्मा उन्हीं को विजयी बनाता है ॥५॥ यह ४७वाँ सूक्त और चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    धनों को देने की कामनावाला [ रयीणां सिषासतुः ]

    पदार्थ

    [१] हे सोम ! तू (भरेषु) = संग्रामों में (जिग्युषाम्) = विजय की कामनावालों के लिये (रयीणाम्) = धनों के (सिषासतुः) = देने की कामनावाला (असि) = है । 'काम-क्रोध-लोभ' आदि आसुरभावों के साथ संग्राम करनेवाले को यह सोम उत्कृष्ट ऐश्वर्य प्राप्त कराता है। यह विजेता 'तेज, वीर्य, बल, ओज, मन्यु व सहस्' रूप ऐश्वर्यों को प्राप्त करनेवाला होता है। [२] (इव) = जिस प्रकार वाजेषु युद्धों में (अर्वताम्) = घोड़ों को घास आदि देते हैं, इसी प्रकार सोम हमें संग्रामविजयेच्छु होने पर सब रयि प्राप्त कराता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - वासना-संग्राम में विजयी बनें, तो सुरक्षित सोम हमारे लिये सब ऐश्वर्यों को देता अगले सूक्त में भी 'कवि भार्गव' ही कहता है-

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    विषय

    सर्वपोषक राजा शासक, सेवकों को भृति, वेतन आदि का देने वाला हो।

    भावार्थ

    (भरेषु) भरण पोषण करने योग्य, अधीन भृत्यों में से (जिग्युषाम्) विजयशील (वाजेषु) संग्रामों में (अर्वताम् इव) घोड़ों के लिये घास के समान जान लड़ा देने वालों के निमित्त तू (रयीणाम् सिषासतुः असि) ऐश्वर्यों, धनों, वेतनों का देने वाला है। इति चतुर्थो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कविर्भार्गव ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ३, ४ गायत्री। २ निचृद् गायत्री। ५ विराड् गायत्री॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, lord of peace, prize and joy, you love to give and you are the giver of all jewels of wealth and honour to all aspirants: like success to the pioneers in the race for life’s glory, and victory to the ambitious warriors in the battles of life’s excellence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे युद्धात कर्मयोगी बनून विजयाची इच्छा करतात परमात्मा त्यांनाच विजयी करतो. ॥५।

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