Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 47 के मन्त्र
1 2 3 4 5
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 47/ मन्त्र 2
    ऋषिः - कविभार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    कृ॒तानीद॑स्य॒ कर्त्वा॒ चेत॑न्ते दस्यु॒तर्ह॑णा । ऋ॒णा च॑ धृ॒ष्णुश्च॑यते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कृ॒तानि॑ । इत् । अ॒स्य॒ । कर्त्वा॑ । चेत॑न्ते । द॒स्यु॒ऽतर्ह॑णा । ऋ॒णा । च॒ । धृ॒ष्णुः । च॒य॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कृतानीदस्य कर्त्वा चेतन्ते दस्युतर्हणा । ऋणा च धृष्णुश्चयते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कृतानि । इत् । अस्य । कर्त्वा । चेतन्ते । दस्युऽतर्हणा । ऋणा । च । धृष्णुः । चयते ॥ ९.४७.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 47; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    विद्वज्जनाः (अस्य इत्) अस्य परमात्मनः (दस्युतर्हणा कृतानि कर्त्वा) दुष्टहननरूपाणि कर्माणि (चेतन्ते) संस्मरन्ति। (धृष्णुः) अथ च स्वयंशास्ता स जगदाधारः (ऋणा च चयते) देवर्षिपितॄणां ऋणोद्धारमुपदिशति ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    विद्वान् लोग (अस्य इत्) इस परमात्मा के (दस्युतर्हणा कृतानि कर्त्वा) दुष्टनाशनरूप किये हुये कर्म्मों का (चेतन्ते) स्मरण करते हैं (धृष्णुः) और स्वयंशासक वह परमात्मा (ऋणा च चयते) देवऋणादि तीनों ऋणों के उद्धार का उपदेश करता है ॥२॥

    भावार्थ

    देवऋण, पितृऋण, ऋषिऋण इन तीन ऋणों को उतारने योग्य वही पुरुष हो सकता है, जो परमात्माज्ञापालन करता हुआ उद्योगी बनता है ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ऋण चयण

    पदार्थ

    (अस्य) = इस सोम के (दस्युतर्हणा) = दुष्ट विचारों को नष्ट करनेवाले (कर्त्वा) = कर्त्तव्य और (कृतानि इत) = किये कार्य भी चेतन्ते सब जानते हैं। (धृष्णु) = शत्रुओं का घर्षण करनेवाला [कामादि का विजेता] ॠणा च चयते सद्गुणों का संचय भी करता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमी दुष्ट विचारों का शमन तथा सद्विविचारों का संग्रह करता है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उसके कर्म और ऐश्वर्य।

    भावार्थ

    (अस्य) इसके (दस्यु-तर्हणा) दुष्टों के नाश करने वाले, (कर्त्वा) करने योग्य कर्त्तव्य और (कृतानि इत्) किये कार्य भी (चेतन्ते) सब को विदित हो जाते हैं और वह (धृष्णुः) शत्रुधर्षक वीर पुरुष (ऋणा च चयते) धनों का भी संग्रह कर लेता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कविर्भार्गव ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ३, ४ गायत्री। २ निचृद् गायत्री। ५ विराड् गायत्री॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The deeds done and to be done by this Soma, by which he destroys negativities and dispels darkness are known, and, daring and powerful, he acquits the celebrants of debts and obligations.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    देवऋण, पितृऋण, ऋषिऋण हे तीन ऋण तोच पुरुष फेडू शकतो जो परमात्म्याच्या आज्ञेचे पालन करत उद्योगी बनतो. ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top