ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 69/ मन्त्र 7
सिन्धो॑रिव प्रव॒णे नि॒म्न आ॒शवो॒ वृष॑च्युता॒ मदा॑सो गा॒तुमा॑शत । शं नो॑ निवे॒शे द्वि॒पदे॒ चतु॑ष्पदे॒ऽस्मे वाजा॑: सोम तिष्ठन्तु कृ॒ष्टय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठसिन्धोः॑ऽइव । प्र॒व॒णे । नि॒म्ने । आ॒शवः॑ । वृष॑ऽच्युताः । मदा॑सः । गा॒तुम् । आ॒श॒त॒ । शम् । नः॒ । नि॒ऽवे॒शे । द्वि॒ऽपदे॑ । चतुः॑ऽपदे । अ॒स्मे इति॑ । वाजाः॑ । सो॒म॒ । ति॒ष्ठ॒न्तु॒ । कृ॒ष्टयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सिन्धोरिव प्रवणे निम्न आशवो वृषच्युता मदासो गातुमाशत । शं नो निवेशे द्विपदे चतुष्पदेऽस्मे वाजा: सोम तिष्ठन्तु कृष्टय: ॥
स्वर रहित पद पाठसिन्धोःऽइव । प्रवणे । निम्ने । आशवः । वृषऽच्युताः । मदासः । गातुम् । आशत । शम् । नः । निऽवेशे । द्विऽपदे । चतुःऽपदे । अस्मे इति । वाजाः । सोम । तिष्ठन्तु । कृष्टयः ॥ ९.६९.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 69; मन्त्र » 7
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
विषय - राजा के अधीन भृत्य शासकों के कर्त्तव्य।
भावार्थ -
(निम्ने प्रवणे) निम्न प्रदेश में जिस प्रकार (सिन्धोः) बहते प्रवाह के (वृष-च्युताः) वर्षते मेघ से गिरे हुए (आशवः) वेग से जाने वाले जलसमूह (गातुम् आशत) स्वयं मार्ग या भूमि को प्राप्त कर लेते हैं उसी प्रकार (वृष-च्युताः) बलवान् सर्वप्रबन्धक, वृत्तिदाता पुरुष से प्रेरित होकर (आशवः) वेगवान् (मदासः) हर्षयुक्त जन (निम्ने प्रवणे) उसके नीचे के पद पर रहकर भी उस (सिन्धोः इव) सिन्धु के समान गंभीर प्रभु की (गातुम्) भूमि वा आज्ञा को प्राप्त करते हैं। कृप हिंसा-संक्लेशन-दानेष्वपि। भ्वा०। कै गै शब्दे॥ (नः निवेशे) हमारे रहने के स्थान में (अस्मे द्विपदे चतुष्पदे) हमारे दोपायों और चौपायों को (शं) कल्याण, सुख और शान्ति प्राप्त हो। और (अस्मे) हमारे (वाजाः) अन्न और (कृष्टयः) खेतियां तथा मनुष्य प्रजाएं पुत्र पौत्रादि भी हे (सोम) उत्तम शासक ! सब (तिष्ठन्तु) स्थिर होकर रहें। विनष्ट न हों।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - हिरण्यस्तूप ऋषिः ॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, ५ पादनिचृज्जगती। २—४, ६ जगती। ७, ८ निचृज्जगती। ९ निचृत्त्रिष्टुप्। १० त्रिष्टुप्॥ दशर्चं सूक्तम्॥
इस भाष्य को एडिट करें