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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 669
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
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इ꣡न्द्रा꣢ग्नी꣣ आ꣡ ग꣢तꣳ सु꣣तं꣢ गी꣣र्भि꣢꣫र्न꣣भो व꣡रे꣢ण्यम् । अ꣣स्य꣡ पा꣢तं धि꣣ये꣢षि꣣ता꣢ ॥६६९॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्रा꣢꣯ग्नी । इ꣡न्द्र꣢꣯ । अ꣣ग्नीइ꣡ति꣢ । आ । ग꣣तम् । सुत꣢म् । गी꣣र्भिः꣢ । न꣡भः꣢꣯ । व꣡रेण्य꣢꣯म् । अ꣣स्य꣢ । पा꣣तम् । धिया꣢ । इ꣣षि꣢ता ॥६६९॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्राग्नी आ गतꣳ सुतं गीर्भिर्नभो वरेण्यम् । अस्य पातं धियेषिता ॥६६९॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्राग्नी । इन्द्र । अग्नीइति । आ । गतम् । सुतम् । गीर्भिः । नभः । वरेण्यम् । अस्य । पातम् । धिया । इषिता ॥६६९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 669
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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विषय - "Missing"
भावार्थ -
भा० = (१) हे ( इन्द्राग्नी ) = ऐश्वर्यवान् आचार्य ! और ज्ञानसम्पत्र अग्ने ! उपदेशक ! जिस प्रकार वायु और सूर्य सब जगत् की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार ( अस्य मध्ये ) = इस संसार के बीच में ( इषिता ) = समस्त बातों का ज्ञान कराने हारे ( गीर्भि: ) = अपनी वाणियों से और ( धिया ) = अपनी धारणावती बुद्धि से ( नभः ) = समस्त जगत् की ओर ( वरेण्यं सुतं ) = वरण करने योग्य, श्रेष्ठ पुत्र की ( पातं ) = रक्षा करो। अथवा-( नभः ) = सब को एक सूत्र में बांधने वाले ( वरेण्यं ) = श्रेष्ठ ( सुतं ) = ज्ञान और आनन्द का ( पातं ) = उत्तम रीति से स्वयं पान करो, और अन्यों को कराओ, उपदेश करो।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः। देवता - इन्द्राग्नी। छन्दः - गायत्री। स्वरः - षड्जः।
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