अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 2/ मन्त्र 5
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - द्विपदार्ची जगती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
श्र॒द्धापुं॑श्च॒ली मि॒त्रो मा॑ग॒धो वि॒ज्ञानं॒ वासोऽह॑रु॒ष्णीषं॒ रात्री॒ केशा॒ हरि॑तौप्रव॒र्तौ क॑ल्म॒लिर्म॒णिः ॥
स्वर सहित पद पाठश्र॒ध्दा । पुं॒श्च॒ली । मि॒त्र: । मा॒ग॒ध: । वि॒ऽज्ञान॑म् । वास॑: । अह॑: । उ॒ष्णीष॑म् । रात्री॑ । केशा॑: । हरि॑तौ । प्र॒ऽव॒र्तौ । क॒ल्म॒लि: । म॒णि: ॥२.५॥
स्वर रहित मन्त्र
श्रद्धापुंश्चली मित्रो मागधो विज्ञानं वासोऽहरुष्णीषं रात्री केशा हरितौप्रवर्तौ कल्मलिर्मणिः ॥
स्वर रहित पद पाठश्रध्दा । पुंश्चली । मित्र: । मागध: । विऽज्ञानम् । वास: । अह: । उष्णीषम् । रात्री । केशा: । हरितौ । प्रऽवर्तौ । कल्मलि: । मणि: ॥२.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 2; मन्त्र » 5
विषय - व्रत्य प्रजापति का वर्णन।
भावार्थ -
उस व्रात्य का स्वरूप क्या है ? (तस्य) उसके (प्राच्यां दिशि) प्राची दिशा में (श्रद्धा पुंश्चली) श्रद्धा नारी के समान है, (मित्रः मागधः) मित्र सूर्य उसका मागध, स्तुतिपाठक के समान हैं, (विज्ञानं वासः) विज्ञान उसका वस्त्र के समान है। (अहः उष्णीषम्) अहः = दिन उसकी पगड़ी के समान है। (रात्री केशाः) रात्री उसके केश हैं। (हरितौ) दोनों पीत वर्ण के उज्ज्वल सूर्य और चन्द्र (प्रवर्त्तौ) दो कुण्डल हैं। (कल्मलिः) तारे उसके (मणिः) देह पर मणियें हैं। (भूतं च भविष्यत् च) भूत और भविष्यत् उसके (परिस्कन्दौ) आगे पीछे चलने वाले दो पैदल सिपाही हैं। (मनः) मन उसका (विपथम्) नाना मागौं में चलने वाला युद्ध का रथ है॥ ६॥
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १-४ (प्र०), १ ष०, ४ ष० साम्नी अनुष्टुप् १, ३, ४ (द्वि०) साम्नी त्रिष्टुप, १ तृ० द्विपदा आर्षी पंक्तिः, १, ३, ४ (च०) द्विपदा ब्राह्मी गायत्री, १-४ (पं०) द्विपदा आर्षी जगती, २ (पं०) साम्नी पंक्तिः, ३ (पं०) आसुरी गायत्री, १-४ (स०) पदपंक्तिः १-४ (अ०) त्रिपदा प्राजापत्या त्रिष्टुप्, २ (द्वि०) एकपदा उष्णिक्, २ (तृ०) द्विपदा आर्षी भुरिक् त्रिष्टुप् , २ (च०) आर्षी पराऽनुष्टुप, ३ (तृ०) द्विपदा विराडार्षी पंक्तिः, ४ (वृ०) निचृदार्षी पंक्तिः। अष्टाविंशत्यृचं द्वितीयं पर्यायसूक्तम्॥
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